पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/१३९

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कर्मयोग
 


पूर्ण साम्य, जिसका अर्थ है सभी सतहों कि क्रियाशील शक्तियों की समान भाव से स्थिरता, इस संसार में संभव नहीं। उस दशा को पहुँचने के पूर्व संसार किसी भी प्रकार के जीवन के अयोग्य हो चुका होगा और कोई भी प्राणी उसमें न रहेगा। इसलिये हम देखते हैं कि ये राम-राज्य और पूर्ण साम्य के विचार असंभव ही नहीं, यदि हम उनका अनुसरण करें तो अवश्य काल के मुख तक पहुँच जायं। मनुष्य और मनुष्य के बीच अन्तर क्या है? विशेष अन्तर मस्तिष्क का है। आज किसी पागल के सिवा कोई यह न कहेगा कि हम सब समान मानसिक शक्तिवाले उत्पन्न हुये हैं। हम असमान शक्तियों के साथ जन्मते हैं। जन्म से ही कोई छोटा कोई बड़ा होकर आता है; इस जन्म के पूर्व ही निश्चित विधान से कोई चारा नहीं। अमेरिकन इंडियन इस देश में हजारों वर्षों से थे; वहाँ आपके मुट्ठीभर पुरखे आये। देश की दशा में उन्होंने क्या परिवर्तन कर दिया है? यदि सब समान है, तो इंडियन लोगों ने यहाँ सुधारकर नगर क्यों न बसाये? आपके पुरखों के साथ एक नई मानसी शक्ति इस देश में आई; पूर्व-संस्कारों के विभिन्न समूह यहाँ आये, कार्यरूप में वे प्रकट हुये। पूर्ण भेद-भाव का अभाव मरण है। जब तक यह संसार है भेद-भाव होगा और होना चाहिए; पूर्ण समानता का कल्पित सुख-काल तभी आयेगा जब सृष्टि के एक क्रम का अन्त हो चुकेगा। उसके पूर्व समानता हो नहीं सकती। जिस प्रकार वैषम्य सृष्टि के लिये आवश्यक है, उसी भाँति उसके नियमन की चेष्टा