पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/१४४

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कर्मयोग
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आदर्श कर्मयोगी थे, नितांत बिना किसी इच्छा के कर्म करते हुये; और मनुष्य-जाति का इतिहास इस बात की साक्षी देता है फि उनले महत्तर पुरुष कभी कोई उत्पन्न नहीं हुआ। हृदय और] मस्तिष्फ फा अनुल परिपाक, आध्यात्मिक शक्ति का सर्वोत्कृष्ट निदर्शन उन्हीं में हुआ है। संसार के वे सर्वप्रथम महान् सुधारक थे। उन्होंने ही पहले-पहल साहस कर कहा था,-"ये तुम्हारे शाल और वेद यह कहते हैं, वह कहते हैं, इसलिये उस पर विश्वास न करो; तुम्हारे देश का ऐसा रिवाज है, बचपन से तुमने उन पर विश्वास किया है, इसलिये किसी वस्तु पर विश्वास न करो; अपनी बुद्धि से उसका निराकरण करो, उसे सिद्ध करो, तब यदि देखो कि उससे सबका कल्याण होगा तो उसका आचरण करो और दूसरों को वैसा करने में सहायता दो।" वहां सबसे उत्तम कर्म करता है जो बिना धन, मान, कीर्ति अथवा अन्य किसी स्वार्थ-भावना के कर्म करता है; जब मनुष्य वैसा कर सकेगा तो वह बुद्ध होगा, उसीके भीतर-ऐसी कर्म करने को शक्ति जन्मेगी जिससे संसार में परिवर्तन हो जायगा। कर्मयोग के महत्तम आदर्श का वही व्यक्ति योग्य प्रतिनिधि होगा।