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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली खंड 3.djvu/७९

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कर्मयोग
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हैं, उनके दिन बीत चुके । सैकड़ों इच्छाएँ जिनकी वे पूर्ति न कर सके, उनके हृदय में हलचल मचाती हैं। जीवन का प्रायः उनके लिये अंत हो गया। फिर भी दोनों मूर्ख हैं। यह जीवन न अच्छा है न बुरा। अच्छा-बुरा वह हमारे मानसिक दृष्टिकोण के अनु- सार हो जाता है। कर्मठ व्यक्ति न यहाँ पाप देखेगा न पुण्य । आग न अच्छी है न बुरी। जब जाड़े में हमें उससे गर्मी मिलती है तब हम कहते हैं,-"अहा, आग कितनी सुन्दर है !" जब उसमें हाथ जल जाता है, तो हम उसे थोप देते हैं। अपने आप न वह अच्छी है, न बुरी। उसकी अच्छाई-बुराई हमारे उसके व्यवहार करने के ढंग पर निर्भर है। इसी भाँति यह संसार ; वह पूर्ण है। पूर्णता से यह अर्थ कि हमारे व्यवहार के लिये वह पूर्ण है। हम निश्चय-पूर्वक विश्वास कर सकते हैं कि यह संसार-चक्र इसी सुन्दर गति से चला जायगा और उसका उप- कार करने की हमें चिंता न करनी चाहिये।

फिर भी हमें अच्छे कर्म करना चाहिये ; अच्छे कर्म करने की इच्छा चरित्रवान् की सबसे बड़ी इच्छा हो सकती है, यदि हम इस बात का ध्यान रखें कि परोपकार हमारे लिये सौभाग्य की बात है। अभिमान के ऊँचे टीले पर खड़े होकर यह न कहो,-"ले गरीब आदमी, यह पैसा ले।" प्रत्युत उस गरीब आदमी के कृतज्ञ हो कि उसे कुछ देकर तुम अपनी कुछ भलाई कर सकते हो। भला लेनेवाले का नहीं होता; भला देने वाले का होता है। धन्यवाद दो कि संसार में तुम्हें अपनी