पृष्ठ:वीरेंदर भाटिया चयनित कविताएँ.pdf/२०

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अनुकूलन

मैंने कहा
दूध खराब हो गया है
उसने कहा
दूध खराब नहीं होता कभी
तुमसे उसकी अनुकूलता बदल गयी है

मुझे बहुत गुस्सा आया
मैंने कहा
ये आलू जो सड़ गया है
ये प्याज जो
बास मार रहा है
क्या ये भी खराब नहीं ?

उसने कहा
नहीं
इनकी तुमसे अनुकूलता बदल गयी है

मेरे गुस्से का पारावार न रहा

उसने कहा
कुछ भी खराब नहीं होता दरअसल
सिर्फ अनुकूलन बदलता है

मैंने कहा
जो सड़ जाता है, गल जाता है, बदबू देता है

20 वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ