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ठीकरा
तुम्हारे घर
जब मन्दिर बनाने का चन्दा मांगने आये थे कुछ लोग
तुम्हारे ही आजु बाजू तब
भूख से मर रहे थे कुछ मासूम
तुम ध्यान नहीं दे पाए
तुम जब जगराते की रसीद काट रहे थे घर घर जाकर
गांव में हस्पताल बनाने के लिए
मंत्री से मिलने जाना चाहते थे कुछ लोग
तुम समय नहीं निकाल पाए
मंदिर की चोखट नित दिन साफ करते
तुम आदर्श हो चले थे गांव के
विद्यालय में बेशक भर गन्दगी पसरी- थी
पसरी रही
मन्दिर बन गया
बढ़ गया
सिद्ध भी हो गया
विद्यालय बरसो से पाँच तक अटका था
तुम्हारे गांव
तुम्हें ध्यान नहीं रहा
मंदिर में चोर घुस आए थे एक बार
तुम थानेदार से उलझ पड़े थे
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 47