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सब बेटी पर उड़ेल देना किसी दिन
डाल देना उस पर
एक-एक अनुभव को एक-एक जंजीर
शब्दों से बांध देना उसका पूरा अस्तित्व
डर से बांधना
डरा कर बांधना
उसे भी सिखाना
कि बोलना मत
हंसना उन पर
जो बंधन तोड़ रही हैं
लिखना उन पर
जो डर से निकल रही हैं
निंदा करना उनकी
जो बोलने लगी हैं
सुनो
तुम मत बोलना
बिल्कुल मत बोलना
देखती रहना बेटी को
जकड़नों में
जंजीरों में
सर से पांव तक
बोलने का काम स्त्री का थोडे ही है
जो बोल रही हैं
वे तो संस्कारी नहीं हैं
वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 69