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आत्मकथ्य

एक समय की बात है, वरिष्ठ साहित्यकार श्री पूरन मुद्गल जी ने मुझसे सवाल किया कि तुम कविता क्यों लिखते हो? उस समय साहित्यकार श्री हरभगवान चावला और बहादुर पत्रकार श्री रामचंन्द्र छत्रपति भी मौजूद थे! मैंने कहा, मालूम नहीं, बस कोई ख्याल आता है और कलम चलने लगती है!

उन्होंने मुझे डांट लगाई! बोले यदि लेखक को यह मालूम नहीं कि वह लिखता क्यों है तो इससे अधिक खतरनाक बात कोई और नहीं हो सकती! ऐसी कलम क्या लिखेगी या कलम की जिम्मेदारी क्या है यह लेखक को मालूम नहीं तो वह कल को स्तुतियां भी लिख सकती है!

मैं कविता लिखता था और पूरा सच में भेज देता था! छत्रपति जी अच्छी कविता लगा देते, हलकी कविता दबा लेते! लेकिन गुरुजनो की उस बात ने मुझे समझाया कि कविता लिखते वक्त आपकी दोहरी जिम्मेदारी होती है! एक कविता के प्रति और दूसरी उस वर्ग के प्रति जिसके लिए आपकी कविता आवाज बनेगी! और कविता को किस वर्ग की आवाज बनना चाहिए यह तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है!

कविता, समझाने वाले गुरुजनो में श्री परमानन्द शास्त्री श्री हरभजन रेनू और श्री रमेश शास्त्री भी महत्वपूर्ण बातें समझाते रहे! बावजूद इसके, इनकी असीमित समझ और असीमित ज्ञान में से मैं एक कतरा भर सीख पाया!

मुझे लगता है, हर लेखक को पहले यह दृष्टि अवश्य साफ कर लेनी चाहिए कि वह लिखता क्यों है!

- वीरेंदर भाटिया
 
 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 9