पृष्ठ:वीरेंदर भाटिया चयनित कविताएँ.pdf/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
 

किसान जानता था


किसान जानता था
एक दिन में उर्वरा नहीं होती
बंजर जमीन
एक दिन में प्रस्फुटित नहीं होता बीज
एक दिन में तो समतल भी नहीं होता खेत

किसान जानता था
खोदनी पड़ेगी पथरीली जमीन
अपनी उंगलियों से
अपने हाथों से काटनी होंगी कंटीली झाड़ियां
चुनने पड़ेंगे कांटे
हटानी होगी खरपतवार
झेलनी होगी मौसमों की मार

किसान दिल्ली जाने से पहले
आश्वस्त था
कि बंजर पथरीली राजनीतिक जमीन को
पथरीला नहीं रहने देंगे
हटा देंगे कंटीली झाड़ियां
नरमी से तर कर देंगे हर जर्रा

लौट आया है किसान
सब आंखों में नमी छोड़
पथरीली जमीन में उम्मीदों के बीज डाल
कंटीले कानफोडू (मीडिया) कांटो की खरपतवार को हटा

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 91