पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१००

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पांचवां-अध्याय वेद काल का सामाजिक जीवन ईसा से पूर्व ८००० वर्ष वेद का काल है ऐसा अनुमान हम पिछले अध्यायों में कर पाये हैं । अब यह देखना चाहिये कि इस काल में थायों की सामाजिक दशा क्या थी । यद्यपि ऋग्वेद के हिमागम पूर्व के काल पर हम प्रकाश नहीं डाल सकते, परन्तु हिमागम के बाद नव श्रार्य भारतवर्ष में आ पहुँचे थे उस समय की बहुत कुछ बातों का हम अनुमान लगा सकते हैं। वैदिक काल में स्त्री पुरुषों के विवाह सम्बन्ध युवावस्था में उनकी इच्छा से होते थे और वे संबंध यानीवन रहते थे। 'विवाह' शब्द नहीं था, कन्या दान नहीं होता था । कन्यादान का एक ही मंत्र अथर्ववेद में मिलता है जो अाधुनिक है। पति के मरने पर पत्नी का दूसरे पुरुष से पूर्ववत् संवन्ध हो जाता था । स्त्रियाँ माता के वश में नहीं गिनी जाती थीं। न वे माता की वारिस हो सकती थीं। पिता कुटुम्ब का रक्षक और पालक होता था । माता पर बच्चों का दायित्व रहता था, और बच्चे माता की सम्पत्ति होते थे । जाति और वर्ण ऋग्वेद के काल में नहीं थे-कुटुम्ब थे और पिता उनका मुखिया या गृहपति होता था। पशुपक्षियों के पालतु करने और पहचान ने का हम पीछे उल्लेख कर चुके हैं। शिल्प में घर-गाँव--नगर बसाना, सड़का, कुए, बगीचे वनाना, नावों का प्रयोग करना, सृत कातना, वस्त्र वुनना, ऊन वनाना, चर्म के वस्त्र तैयार करना, रंगना और लकड़ी का काम आर्य बहुत अच्छी तरह जान गये थे। n