सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पांचवाँ अध्याय] यह बात हम ऊपर कह चुके हैं कि सभी सूत्र ग्रन्थ ब्राह्मणों के बाद के बने हुए हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों से यह स्पष्ट होता है कि पुरोहितों का उस समय प्राबल्य हो गया था-परन्तु उपनिषद् बताते हैं कि क्षत्रियों की भी प्रधानता थी। मालूम होता है बाह्मण और क्षत्रिय दोनों दल समाज में अपना जातीय स्थान स्थापित करना चाहते थे। उस समय उनका केवल व्यक्तिगत स्थान था पर. धीरे-धीरे जातीय स्थान बन रहा था । ब्राह्मण ग्रन्थों को तब तक ईश्वरीय ज्ञान माना जाता रहा था और वेद ब्राह्मणों की व्याख्या के अनुकूल समझे जाते रहे थे। हम पोछे लिख श्राये हैं कि ब्राह्मणों में दिल्ली से लेकर उड़ीसा तक के प्रबल राज्यों का किस प्रकार वर्णन है । इन राज्यों में ग्राम, नगर, जन पद, परिषद, पाठ- शालाएँ आदि बन गई थीं-नागरिकता का सर्वथा प्रभाव बढ़ रहा था । जनक, अनात शत्रु, जनमेजय और परिक्षित आदि प्रतापी राजाओं के वर्णन हमें यहाँ देखने को मिलते हैं। परन्तु दक्षिण भारत की बस्तियों और निवासियों का कोई जिक्र नहीं है अतः अवश्य ही दक्षिण प्रदेश आर्यों के लिये अपरिचित था । कुरु और पांचाल श्रार्य राजाओं के प्राचीन राजवंश थे। श्राधु- निक दिल्ली के निकट कुरुषों की प्रवल राजधानी थी और ये वही चन्द्रवंशी पुरुप थे जिनका जिक्र सुदास के युद्धों में मिलता है। ऐतरेय ब्राह्मण से पता लगता है कि उत्तर कुरु तथा उत्तर माद्र लोग हिमालय के उस पार रहते थे। टालमी का 'पोहोर-कोर्ट, उत्तर कुरु ही है हमारा खयाल है यह जाति काशगर के रास्ते काश्मीर में बसती हुई गंगा की घाटियों तक श्राई थी। बाद में कुरुओं के बस जाने पर पांचाल लोग भी भागे को बढ़े और उन्होंने कन्नौज के निकट अपने राज्य को स्थापित किया । ये पाँचाल कदाचित् वही पञ्चजन हैं जिनका उल्लेख ग्वेट में है।