[वेद और उनका साहित्य । इन दोनों जातियों के वर्णन से ग्राह्मण भरे पड़े है। इनके यज्ञा टम्बरो और पुरोहितों के ठाठ, पराक्रम, विद्या थोर सभ्यता का ब्राह्मणों से बड़ा पता चलना है। अब ये केवल किमान जाति या तपम्वी न थे-- इनके पास राज्य संपदा, मुशिक्षित सेना, स्थायी राजमहल, मन्त्री, राज. सभा, हाथी, घोड़े, पैदल, रथ, योद्धा सब सामग्री थी। पुरोहित धीरे- धीरे ऊपर चद रहे थे और धर्म-क्रियायों को बढ़ाये चल रहे थे। धार्मिक और सामाजिक कार्यों की यथा नियम शिक्षा मिलती थी ! स्त्रियों का उचित श्रादर था एवं वे स्वतत्र धी-पर्दा न था। परन्तु कुछ लोग यनेक पत्नी करने लगे थे। भाग कुरु पाँचालों में युद्ध होते थे । जब जमुना और गंगा के श्रीच की धरती भर गयो ती उद्योगी अधिवासियो के नवीन भुण्ड गंगा पार कर थागे बढ़े । वे बराबर नदियाँ पार करने तथा जगली को साफ करते हुए पूर्व की योर गरडक नदो तक बन्द गये और राज्य स्थापित किये। गएडक कोशल के पूर्व में तथा विदेह के पश्चिम में थी। अन्ततः विदेहो का राज्य समस्त उत्तर भारत में प्रधान राज्य हो गया। ब्राह्मण और उपनिपद दोनों ही में प्रतापी विदेह जनक का पता चलता है जो प्रबल राजा ही न था, विद्वान और विद्वानों का हितैषी भी था। वह शास्त्रार्थ किया करता था-विहानों को खूब दान भी देता था। उसने अक्षय कीवि प्राप्त की थी। एक बार फाशियों के प्रतापी राजा अजात शत्रु ने कहा था कि 'सचमुच सब लोग यह कह कर भागे जाने हैं कि जनक हमारा रक्षक है।' इमी जनक की सभा में प्रख्यात पुरोहित याज्ञवल्क था जिसने यजुर्वेद का नवीन संस्करण किया और शन पंथ ब्राह्मण बनाया। परन्तु जनक जहाँ इस प्रकार इन पुरोहितों का सत्कार करता था एवं स्वयं भी यज्ञविधि को सब भाह्मणों से अधिक जानता
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