पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१०९

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छठा-अध्याय ब्राह्मण ग्रन्थ हजार वर्षों से, . अपि दयानन्द के प्रादुर्भाव मे प्रथम गत ४ से वेदों को यजपरक स्वीकार किया गया, माह्मण ग्रन्धों को प्रायः सभी प्राचीन हिन्दू वैदिक विद्वानों ने वेदों का ही पद दिया है। इन विद्वानों में शवर, पितृभूति, शंकर, कुमारिल, विश्वरूप, मेघातिथि, कर्क, बाच- म्पति, मित्र, रामानुज, उम्पद और मायण, श्रादि सभी बडे बडे थाचार्य या गये। उन्नीसवीं शताब्दि के अन्त में ऋषि दयानन्द ने साहम पूर्वक यह घोषणा की कि ब्राह्मण अन्य वेद नही है। फिर धीरे धीरे योरोपीय विद्वानों ने वैदिक अनुसंधान की थोर ध्यान दिया थौर अब तो प्रायः सभी पनपात शून्य विद्वान् इस बात को स्वीकार करते है । वास्तव मे वैदिक साहित्य भी इस बात को प्रमाणित करता है कि ब्राह्मण वास्तव में चेद नहीं है । अथर्व वेद के प्रकरण में हम ऐसे बहुत प्रमाण उपनिषद् आदि के तथा स्वयं ब्राह्मणों के भी दे पाये हैं। उनके सिबा गोपथ ब्राह्मण का (पूर्व भाग २-१.) निम्न वाक्य इस बात को और भी स्पष्ट करता है। "वमि मे मवें वेदा निर्मिता सकल्पाः स रहस्याः स ब्राह्मणा मोप नियकाः सेतिहासा: सान्याख्यानास पुराणाः स स्वरा. स संस्काराः म निरुता. सानुशासनाः सानुमार्जनाः स वाक्योवाक्या" श्रर्थान्-इस प्रकार ये समस्त वेद कल्प, रहस्य, ब्राह्मण, उपनिषद् इतिहास, अन्याख्यान, पुराण, स्वर ग्रन्थ, संस्कार प्रन्थ, निरुक्त, अनुशासन, अनुमार्जन, और बाक्योवास सहित बनाये गये।