ठा अध्याय] १०६ सभी ब्राह्मण ग्रंथों का प्रधान विषय यज्ञाडम्बर है तो उनकी धागे लिखी जाने वाली विषय सूची से स्पष्ट होगा। प्रत्येक वेद के ब्राह्मणों में पृथक २ विशेषता है। ऋग्वेद के ब्राह्मणों में यज्ञविषयक उन्हीं कर्तव्यों का वर्णन प्रधान रूप से किया गया है, जो होता (ऋचायों का पाठ करने वाले ) को करने पड़ते हैं, सामवेद के ब्राह्मणों में मुख्य रूप में उद्गाता (सामवेद को जानने वाले) के कर्तव्यों का वर्णन किया गया है और यजुर्वेद के ब्राह्मणों में मुख्य रूप से अध्वयु (वास्तविक यज्ञ करने वाले) के कर्तव्यों का निर्देश किया गया है । अब प्रत्येक ब्राह्मण के विषय का स्पष्टी करण सुनिए:- ऋग्वेद के ब्राह्मणों में से ऐतरेय ब्राह्मण सबसे अधिक महत्त्वशाली हैं। यह ४० अध्याय अथवा पांच पाँच अध्यायों की पाठ पम्चिकाओं में विभक्त है । इसके अन्त के दस अध्याय बाद की रचना प्रतीत होते हैं, क्योंकि एक तो ग्रन्थ के विषय से भी ऐसा ही प्रतीत होता है, दूसरे इसी विषय का पूर्ण वर्णन करने वाले शांखायन ब्राह्मण में उस विपय पर कुछ भी नहीं लिखा। इसमें भी प्रथम पाँच पंचिकाओं की अपेक्षा बाद की तीन पंचिकाएँ नवीन प्रतीत होती हैं, क्योंकि उनमें नये नये लकारों का प्रयोग किया गया है, जब कि पहिला अंश विशुद्ध प्राचीन ब्राह्मण ढंग का है। इस ब्राह्मण में अधिकतर सोमयाग का वर्णन किया गया है, इसके एक से सोलहवें अध्याय तक अग्निष्टोमयोग का वर्णन किया गया है, जो एक दिन में ही समाप्त हो जाता है । फिर अध्याय १७ से १८ तक गवामयन याग का वर्णन किया गया है। तो ३६० दिन तक किया जाता है। फिर अध्याय १६ से २४ तक द्वादशाह अर्थात् बारह दिन के यज्ञ का वर्णन किया गया है । फिर अध्याय २५ से ३२ तक अग्निहोत्र का वर्णन किया गया है। अन्त में अध्याय ३३ से ४० तक राजसूययज्ञ का वर्णन किया गया है । इस प्रकार यह सबसे प्राचीन
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