हा अध्याय १३३ शिष्य था, शौनक शिष्य होने से ही प्राश्वलायन अपने श्रौतसूत्र वा गृह्यसूत्र के अन्त में~नमः शौनकाय नमः, शौनकाय लिखा है। शाखाप्रवर्तक होने से शौनक व्यास का समीपवर्ती है, अतएव महिदास ऐतरेय भी कृष्ण द्वैपायन व्यास से निकट ही रही है, इस महिदास ऐतरेय का प्रवचन होने से ऐतरेय ब्राह्मण महाभारत कालीन है, और इसी महिदास का उल्लेख करने से छान्दोग्य उपनिषद् का ब्राह्मण भी महाभारत कालीन है, उपनिषद् भाग कुछ पीछे का भी हो सकता है, क्योंकि याज्ञवल्क्यादि ऋषियों ने एक दिन में ही तो सारा ब्राह्मण कह नहीं दिया था, इसके प्रवचन में कई-कई वर्ष लगे होंगे, इससे प्रतीत होता है कि ताण्ड्य श्रादि अपि जब छान्दोग्य श्रादि उपनिषदों को अभी कर रहे तो महिदास ऐतरेय का देहान्त हो चुका होगा, महिदास इन दूसरे ऋषियों की अपेक्षा कुछ कम ही जीवित रहे होंगे। जैमिनि उपनिषद् ब्राह्मण ४।२।१६ के निम्न लिखित वाक्य की भी यही संगति है- एतद्ध तद्विद्वान् ब्राह्मण उवाच महिदास ऐतरेयः । सह पोडशशतं वर्षाणि जिजीव । ऐतरेय श्रारण्यक ऐतरेय ब्राह्मण का ही अन्तिम भाग है, उसमें भी महिदास ऐतरेय का नाम पाया है- एतद्ध स्मवै तद्विद्वानाह महिदास ऐतरेयः । २१ जिससे हमारे पूर्व कथन की पुष्टि होती है । यहाँ यह बात विशेष रूप से ध्यान में रखने की है कि प्राचीन ग्रन्थ- कार अपना नाम उपरोक्त प्रकार से भी अन्य में दे दिया करते थे, शतपथ बामण में याज्ञवल्क्य ने, कामसूत्रों में वात्तस्यायन ने और वेदान्त सूत्रों बादरायण ने इसी प्रकार अपने नाम का प्रयोग किया है । खोलने पर और भी सैकड़ों उदाहरण ऐसे मिल सम्ने है। ... 2
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