पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१३७

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छा अध्याय] (१) बादरायण (१०) ताण्डि (११) शाय्यायनि इन्हीं अन्तिम दो व्यक्तियों ने ताण्ड्य और शाय्यायन ब्राह्मणों का प्रवचन किया था, ये श्राचार्य पाराशर्य व्यास से कुछ ही पीछे के हैं, प्रतः इनके कहे हुए ब्राह्मण अन्थ भी महाभारत-कालीन ही है, संभवतः शतपथ ६१६।२।२५ में- अथ ह स्माह ताण्ड्यः निस ताण्ड्य का कथन है, वह इसी का सम्बन्धी है। इस प्रकार अनेक प्रमाणों से यह सिद्ध हो गया कि बाह्मणों का प्रवचन महाभारत काल में ही हुथा है, अब जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि वैदिक सूक्तों और ब्राह्मणों की बम्बी अनादि अनन्त थोथी बातों क्या तारतम्य है तो हमारे सामने तत्कालीन समाज की वस्तुस्थिति सन्मुख या नाती है । वह काल नव वे श्रार्य लोग नो केवल अाकाश, सूर्य और प्रभात को देखकर उन पर मोहित होते थे, विस्तृत नाति और ननपद निर्माण कर चुके थे-प्रजापति, राज्य और नागरिकता के सभी स्थूल उपकरण निर्माण कर चुके थे तब वे केवल वृष्टि के देवता इन्द्र की अथवा प्रभात की देवी उपा की स्तुति सीधे साधे ढंग से कैसे करते रहते ? उनमें श्रव श्राडम्बर और रूदियों के साथ साथ प्रमाद और सांसारिकता बढ़ गई थी । अव सायंकाल के अर्ध्य से लेकर बड़े-बड़े विधान के.राजसूय और अश्वमेध-यज्ञों का अनुष्ठान होता था जो वर्षों में समाप्त होता था। यज्ञों के नियम, छोटी-छोटी बातों का गुरुव, और उद्देश्य-तुच्छ रीतियाँ थव मनुष्यों के उन स्वच्छ हृदयों में जिनमें ही