सातवाँ घध्याय ] १४७ -- करना पड़ता था उस समय मैंने तुझे गर्भ में धारण किया था । यह नहीं जानती कि तू किस वंश का है। मेरा नाम जवाला है, तु सत्यकाम है; इसलिये यह कह कि मैं सत्यकाम नाबालि है । (३) “वह गौतम हरिद्रमत के पास गया और उनसे बोला 'महा. शय में आपके पास ब्रह्मचारी हुया चाहता हूँ । महाशय क्या मैं पापके पास पा सकता हूँ ?" (४) उसने उससे कहा 'मित्र तू किस वंश का है ?' उसने उत्तर दिया, 'महाशय, मैं यह नहीं जानता कि मैं किस वंश का हूँ। मैंने अपनी माता से पूछा था, उसने उत्तर दिया कि 'मेरी युवावस्था में जब मुझे बहुत करके दासी का काम करना पड़ता था उस समय मैंने नुमे गर्भ में धारण किया था। मैं यह नहीं जानती कि तू किस वंश का है। मेरा नाम जवाला है, तु सत्यकाम है, इसलिये महाशय मैं सत्यकाम जाबालि हूँ।" (५) इसने कहा ' सञ्चे ब्राह्मण के सिवाय और कोई इस प्रकार से नहीं बोलेगा। मित्र, जायो इंधन ले भावो मैं तुझे दीक्षा दूगा । तुम सत्य से नहीं टले।' इसलिये यह सत्य-प्रिय युवा दीक्षित किया गया और उस समय की रीति के अनुसार अपने गुरु के पशु चराने के लिये जाया करता था। कुछ समय में उसने प्रकृति और पशुमों से भी उन बड़ी बड़ी बातों को सीखा लोकि ये लोग सीखनहार हृदय वाले मनुप्यों को सिखलाते हैं। वह जिस झुण्ड को चराता था उसके बैल से, जिस अग्नि को जलाता उससे, और सन्ध्या समय जब वह अपनी गायों को बाड़े में बन्द करने और सन्ध्या की थग्नि में लकड़ी डालने के पीछे उसके पास बैठता था तो उसके पास जो राजहंस और अन्य पक्षी उड़ते थे उनसे भी बातें सीखता था। तब यह युवा शिष्य अपने गुरु के पास गया और उसने
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