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पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१५३

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सातवाँ अध्याय ] १४३ यहाँ आये तो देवता और पितृ लोग भी यज्ञोपवीत पहिने हुए पाए । और कौशोतकि उपनिषद (२,१ ) में लिखा है कि सबको जीतनेवाला कौशीतकि यज्ञोपवीत पहिन कर उदय होते हुए सूर्य की पूजा करता है । इस प्राचीन काल में यज्ञोपवीत को ब्राह्मण, क्षत्री और वैश्य तीनों ही पहिनते थे, लेकिन केवल यज्ञ करते समय । पर अब उस प्राचीन समय का हम वर्पन कर रहे हैं उस समय के हिन्दू लोग सभ्य और शिष्ट हो गये थे और उन्होंने अपने घर के तथा सामाजिक काम करने के लिये सूक्ष्म नियम तक बना लिये थे। राजाओं की सभा विद्या का स्थान थी और उसमें सब जाति के विद्वान् और बुद्धिमान लोग बुलाए जाते थे, उनका श्रादर सम्मान किया जाता था और उसे इनाम दिया जाता था । विद्वान् अधिकारी लोग न्याय करते थे, और जीवन के सब कोम नियम के अनुसार किये जाते थे। सब जातियों में मजबूत दीवारों और सुन्दर मकानों के नगर बहुतायत से हो गये थे, जिनमें न्यायाधीश, दण्ड देनेवाले और नगररत्तक लोग होते थे। खेती की उन्नति की जाती थी और राज्याधिकारी लोगों का काम कर उगाहने और खेतिहारे के हित की ओर ध्यान देने का था । विदेहों, काशियों और कुरु पंचालों की नाई सभ्य और विद्वान् राजाओं की सभाएं उस समय में विद्या की मुख्य जगह थी। ऐसी सभाओं में यज्ञ करने और विद्या की उन्नति करने के लिये विद्वान् पण्डित लोग रक्खे जाते थे और बहुत से ब्राह्मण ग्रन्थ जो कि हम लोगों को आजकल प्राप्त है उन्हीं सम्प्रदायों के बनाये हुए हैं जिनकी नींव इन पण्डितों ने डाली थी। बड़े बड़े अवसरों पर विद्वान् लोग बड़े बड़े दूर के नगरों और गाँवों से आते थे और शास्त्रार्थ केवल क्रिया संस्कार के हीविएय में न होता था, वरन् ऐसे ऐसे विषयों पर भी जैसे कि मनुष्य का मन, मरने के पीछे आत्मा का उद्देश्य स्थान, आनेवाली दुनियाँ,