पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१५७

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सातवाँ अध्याय ] 1 घरानों में पवित्र अग्नि रहती थी। वे यतिथियों का सत्कार करते थे, देश के कानून के अनुसार रहते थे, ब्राह्मणों की सहायता से बलि इत्यादि देते थे और विद्या की कदर करते थे । प्रत्येक धार्य बालक छोटे- पन से ही पाठशाला में भेजा जाता था । ब्राह्मण क्षत्री और वैश्य सब एक ही साथ पढ़ते थे और एक ही पाठ और एक ही धर्म की शिक्षा पाते थे। फिर घर आकर विवाह करते थे और गृहस्थों की नाई रहने लगते थे। पुरोहित तथा योद्धा लोग भी जन साधारण के एक अंग ही थे, जन साधारण के साथ परस्पर विवाह श्रादि करते थे और जन साधारण के साथ खाते पीते थे । अनेक प्रकार के कारीगर सभ्य समाज की विविध आवश्यकताओं को पूरा करते थे और अपने पुरतेनी व्यवसाय को पीढ़ी दर पीढ़ी करते थे, परन्तु वे लोग जुदे जुदे होकर भिन्न भिन्न जातियों में नहीं बंट गए थे । खेतिहर लोग अपने पशु तथा हल इत्यादि लेकर अपने अपने गाँवों में रहते थे और हिन्दुस्तान की पुरानी प्रथा के अनुसार प्रत्येक गाँव का प्रदन्ध और निपटारा उस गाँव की पंचायत द्वारा होता था । इस प्राचीन जीवन का वर्णन बहुत बढ़ाया जा सकता है पर सम्भवतः पाठक लोग इसकी स्वयं ही कल्पना कर लेंगे । हम श्रव प्राचीन समाज के इस साधारण वर्णन को छोड़कर इस बात की जांच करेंगे कि उस समाज की स्त्रियों की कैसी स्थिति थी। यह तो हम दिखला ही चुके हैं कि प्राचीन भारतवर्ष में स्त्रियों का बिलकुल परदा नहीं था। चार हजार वर्ष हुए कि हिन्दू सभ्यता के धादि से ही हिन्दू स्त्रियों का समाज में प्रतिष्टित स्थान था, वे पैतृक सम्पत्ति पाती थीं और सम्पत्ति की मालिक होती थी, वे यज्ञ और धर्मों के काम में सम्मिलित होती थी, वे बड़े बड़े अवसरों पर बड़ी बड़ी सभात्रों में जाती थी, वे खुल्लमखुल्ला आम जगहों में जाती थी, वे बहुधा उस समय के शास्त्र और विद्या में विशेप योग्यता पाती थीं और राजनीति तथा सन में भी उनका उचित अधिकार था, यद्यपि वे मनुष्यों के समान