पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१८७

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नवा अध्याय] १८३ श्राद्ध श्रादि के नियम हैं वे ग्रन्थ प्रायः बाद के हैं, इस विषय के निम्न लिखित ग्रन्थ अभी तक छपे हैं- (१) मानव श्राद्ध कल्प, सम्पादक W. Caland, Altin- discher bnencult pp. 228 ff. (२) शौनकीय श्राद्धकल्प ils PP. 240 f. (३) पिप्पलाद श्राद्धकल्प कुछ अंश its PP. 243 ff. (४) कात्यायन श्राद्धकल्प ils pp. 245fi', (५) गौतम श्राद्धकल्प S. Caland in Bijadragen tot de taal, lapden volkenkunde van ned India, 6 Volg. deel I, 1884 (६) बौधायन पितृमेध सूत्र W. Caland, A-K, M. (७) हिरण्यकेशी X. 3 1896 (८) गौतम परिशिष्ट इस प्रकार के साहित्य के पश्चात् परिशिष्ट पाते हैं, जिनमें उन बातों को बड़े भारी विस्तार से लिखा गया है जो सूत्रों में संक्षेप से लिखी गई हैं। इनमें से गोभिल गृह्यसूत्र के परिशिष्ट विशेष महत्वशाली हैं। उनमें से एक गोभिल पुत्र का गृह्य संग्रह परिशिष्ट कहलाता है और दूसरा कर्म- प्रदीप । अथर्ववेद के परिशिष्ट धार्मिक इतिहास में विशेष चित्रित हैं, क्योंकि यह सर्व प्रकार के मंत्र तंत्र श्रादि का काम करते हैं। सबसे प्राचीन परिशिष्टों में से प्रायश्चित सूत्र भी महत्वशाली है। यह वैतान सूत्र का भाग है। प्रकाशित परिशिष्ट (१) क. गोभिल सूत्र गृह्य संग्रह परिशिष्ट, G. M. Bloom- field, L D. M. G. Vol 35.