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पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/२६

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मयम अध्याय] PS , गवेपणा में-गाथा शास्त्र, व्युत्पत्ति शास्त्र, पुरातत्व शास्त्र, मस्तिष्क विज्ञान, मानवीय शास्त्र, भूस्तर शास्त्र तथा प्राण्यवशेष शास्त्र की सहायता लेते हैं । तिलक पक्ष भी इसी मत का है। दर्शन शास्त्र प्रबल बुद्धिगम्य शास्त्र है, पर वेदों के विषय में उसका वर्णन अस्पष्ट ही है और विशेषता यह है कि सब दर्शनकारों का इस विषय में मत भी एक नहीं । वेदांत सूत्रकार, उनके भाप्पकार व्यास और शंकर का कथन है 'शब्द जिस व तु जाति के वाचक हैं वह जाति नित्य है। नैयायिक वेदों को स्वतः प्रमाण कहते हैं। वैशेपिक ईश्वर कृत कहते हैं, सांख्यकार आदि पुरुप से वेद की उत्पत्ति मानते हैं और मीमांसाकार वेदार्थ को नित्य मानते हैं। ये सभी मत ब्रह्मवादी मत के लगभग अनुकूल हैं । यदि तिलकमत पर ध्यान दिया जायजो कि अबतक प्रकाशित सभी मतों की अपेक्षा प्रमाणयुक्त है -तो भू-गर्भ-शास्त्र वेत्ताओं का यह कथन कि उत्तरीय ध्रुव में हिमागम काल को १० । १२ हजार वर्ष हो गये तिलक मत की कालकल्पना से मिलान खा जाता है, परन्तु वेदों के समर्थक विद्वान पं. सत्यव्रत सामश्रमी ने तिलक मत का गहरा विरोध किया है। हमारी सम्मति से इस विरोध में बल नहीं है, न विवे. चना है और तर्क भी स्थूल ही है । तिलक ने अपने पोरायन नामक ग्रंथ में अंकगणित और ज्योतिष के सिद्धांतों के आधार पर अनैतिहासिक वैदिक काल के समय का इस प्रकार अनुमान किया है:- वेदकाल-मृगशीर्षकाल ईस्वी सन से पूर्व १०,००० से ८००० वर्ष तक ६००० से २५०० कृत्तिकाकाल २५०० से १४० तैतिरीय संहिता (ब्राह्मण) २५०० से १४०० (अरण्यक) २००० से १४०० > " 93 1: , " " 33 73 5, "