पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथम अध्याय ] 3 बारें आती थीं। इस प्रदेश में चार मास वर्षा ऋतु रहती थी। वर्षा ऋतु को "चौमासा, या चातुर्मास, अब भी कहते हैं, ! राजपूताना समुद्र लुप्त होने और गंगा की झील नष्ट होने से सप्तसिन्धु (पंजाब ) गर्म देश हो गयर और वर्षा भी कम हो गई । ऋग्वेद में वर्ष को पहले हिम, फिर हेमन्त तथा बाद में शरद कहा है उसका कदाचित यही अभिप्राय हो सकता है। अग्वेद में, कीकट, प्रदेश का वर्णन है, यथा “इस अनार्य कीकट में गौएँ क्या खाएँगी"। यह कीट देश कोई असर होगा जो उत्तर से दक्षिण पूर्व की यात्रा करते हुए भार्यों को मिला होगा। इस महान भौगोलिक परिवर्तन के बाद आर्यो ने लम्बी यात्राओं का साहस किया । कुछ भाग यूरुप के अत्यन्त पश्चिम में पहुंचा और कुछ ईराच मैं फिर से जा बसा, परन्तु मालूम होता है पूर्व की तथा दक्षिण की ओर वे देर में बढ़े। क्योंकि सम्भवतः समुद्र हट जाने पर भी बहुत काल तक भूमि, यात्रा और निवास के योग्य न रही हो । ऋग्वेद 'पण' नामक एक जाति का उल्लेख करता है जो बल- च्यापारी थी। यह अवश्य प्रायों में से निकली हुई ऋग्वेद के उत्तर काल की नवसंगठित जाति होगी। इस जाति के लोग बड़े कारीगर किन्तु पुरे लालची होते थे। ब्याज बहुत लेते थे। ऋग्वेद के कुछ सूलों में इनके दुर्व्यवहार से तंग आकर इनसे युद्ध करने का वर्णन पाया है। इन्हें लुटेरा समझा जाता था । आज कल नो ईसनी स्त्री पुरुष लाल रूमाल सिरसे लपेट कर चाकूत्रादि ची वेचते फिरा करते हैं संभक्तः उसी पणी जाति के हों । कम से कम इनके प्राचार व्यवहार को देखकर ऋग्वेद को उस पी जाति की स्मृति हो पाती है। युद्धों से तंग थाकर ये लोग नाविक रूप से समुद्रोही में रहने लगे थे। फिर राजपूताने की भूमि का उद्धार होने पर वे गुजरात के तटों पर तथा मालाबार के इधर उधर