पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/४१

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1 दूसरा-अध्याय ऋग्वेद ऋग्वेद में १०२८ सूक्त हैं जिनमें दश हजार से ज्यादा ऋचाएं हैं। ये सूक्त १० सण्डलों में वांटे गये हैं। इन सूक्तों में प्रार्थनाएँ हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि प्रथम और अंतिम मण्डल को छोड़कर शेष नाठ मण्डलों का एक, एक ऋषि है। दूसरे मण्डल का गृत्समद, तीसरे का विश्वामित्र, चौथे का वामदेव, पाँचवे का अत्रि, छठे का भारद्वाज, सातवें का वशिष्ठ और आठवें का कएव नवें का अंगिरा। पहले मण्डल में १६१ सूक्त हैं जिनमें कुछ के सिवा शेष सूक्तों के सब मिलकर ३५ भिन्न भिन्न ऋपि हैं । दशवें मण्डल में भी १६१ सूक्त हैं और इनके ऋषि भी भिन्न भिन्न हैं । ऋग्वेद का क्रम और संग्रह जैसा कि वह अब है पौराणिक काल से भी प्रथम तैयार कर दिया गया था, ऐसा प्रतीत होता है। ऐतरेय आरण्यक (२,२) में मण्डलों के क्रम से ऋग्वेद के ऋपियों के नाम की कल्पित उत्पत्ति दी है और इसके पीछे सूक्तों की, ऋक् की, अर्ध ऋक् की, पद की, और अक्षरों तक की गिनती दी है। इससे पता लगता है कि पौराणिक काल के प्रारम्भ में बड़ी साव- धानी से उसके भाग उपभाग बना लिये गये थे और ऋग्वेद की हर एक ऋचा, हर एक शब्द, और हरएक अक्षर तक की गिनती करली गयी थी। इस गिनती के हिसाब से ऋचाओं की संख्या १०४०२ से लेकर १०६२२ तक, शब्दों की संख्या १५३८२६० और अक्षरों की ४३२००० है। सबसे बड़ी बात जो ऋग्वेद को देखने से प्रतीत होती है और जो बिना किसी समुदाय और प्राचार्य के मत का लिहाज किये कही जा "कती है, यह है कि ऋग्वेद का मध्यकाल वह था जब आर्यों का विस्तार