पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दूसरा अध्याय ] . से रहता "इन्द्र ने अपने वज्र और अपनी शक्ति से दस्युओं के देश का नाश कर दिया और अपनी इच्छा के अनुसार भ्रमण करने लगा। हे बज्री ! तू हम लोगों के सूक्तों पर ध्यान दे, दस्युओं पर अपने शस्त्र चला और श्रार्यों की शक्ति और यश बढ़ा।" (ऋ० १-१०३-३) "कुयव दूसरे के धन का पता पा कर उसे अपने काम में लाता है। वह पानी में रह कर उसे खराब करता है। उसकी दोनों स्त्रियाँ जो नदी में स्नान करती हैं, शीका नदी में डूब मरें !" "अयु पानी में एक गुप्त किले में रहता है। वह पानी की बाढ़ में श्रानन्द है । अञ्जसी, कुलिशी और वीर पत्नी नदियों के पानी उसकी रक्षा करते हैं।" (ऋ० १-१०-३ और ४) "इन्द्र लड़ाई में अपने श्रार्य पूजकों की रक्षा करता है। वह नो कि हजारों बार उनकी रक्षा करता है। सब लड़ाइयों में भी उनकी रक्षा करता है। जो लोग प्राणियों ( अायों ) के हित के लिए यज्ञ नहीं करते, उन्हें वह दमन करता है। शत्रुओं की काली चमड़ी को वह उधेड़ डालता है, उन्हें मार डालता है, और ( जलाकर) राख कर डालता है। जो लोग हानि पहुँचानेवाले और निर्दयो हैं उन्हें वह जला डालता है।" (ऋ० १-३०८) "हे शत्रुओं के नाश करनेवाले ! इन सब लुटेरों के सिर को इकट्ठा करके उन्हें अपने चौड़े पैर से कुचल डाल ! तेरा पैर चौड़ा है।" "हे इन्द्र ! इन लुटेरों का बल नष्ट कर उन्हें इस बड़े और घृणित खट्टे में फेंक दे।" "हे इन्द्र ! तूने ऐसे-ऐसे पचास से भी तिगुने दलों का नाश किया है।' लोग तेरे इस काम की प्रशंसा करते हैं। पर तेरी शक्ति के धागे यह भो बात नहीं है।"