दूसरा अध्याय ] ऋग्वेद के अनेक वाक्यों से जाना जाता है कि कुत्स एक प्रतापी, योद्धा और काले प्रादि निवासियों का एक प्रवल नाश करनेवाला था। म , ४ सू० १६ में लिखा है कि इन्द्र ने कुत्स को धन देने के लिए मायावी तथा पापी दस्यु का नाश किया, उसने कुत्स की सहायता की और आप दस्यु को मारने के लिये उसके घर आया और उसने लड़ाई में पचास हजार " काले शत्रुश्नों" को मारा । म ४ सू० २८ ऋ० ४ से पता चलता है कि इन्द्र ने दस्युओं को गुण हीन तथा सब मनुष्यों का घृणपात्र बनाया है। मं० ४ सू० ३ ऋ० १५ से जाना जाता है कि इन्द्र ने एक हजार पाँच सौ दासों का नाश किया। , ऋ० ३, मं० ६ सू० १८ ऋ० ३ और मं०६ सू०२५ ऋ०२ में दस्यु लोगों तथा दासों के दमन करने और नाश करने के इसी तरह के वर्णन हैं । मं० ६ सू० ४१ ऋ० २० में दस्यु लोगों के रहने की एक अज्ञात जगह का विचित्र वर्णन है जो कि अनुवाद करने योग्य है। मं०५ सू० ७ "हे देवतायो ! हम लोग यात्रा करते हुए अपना रास्ता भूल कर ऐसी जगह पा गये हैं जहाँ पशु नहीं चरते। यह बड़ा स्थान केवल दस्युयों को ही प्राश्रय देता है । हे बृहस्पति ! हम लोगों को अपने पशुओं की खोज में सहायता दो। हे इन्द्र ! मार्ग भूले हुए अपने पूजनेवालों को ठीक रास्ता दिखला ।" यह जान पड़ता है कि थार्य लोग आदिवासी असभ्यों के चिग्धाद और हल्ले का वर्णन बहुत ही निंदा पूर्वक करते थे। ये सभ्य विजयी लोग यह बात कठिनता से विचार सकते थे कि ऐसी चिग्वाद भी भाषा हो सकती है, अतएव उन्होंने इन असभ्यों को कहीं कहीं भाषा हीन लिखा है। मं० ५ स. २० -
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