{ बेद और उनका साहित्य के महत्व के विषय में कुछ भी ज्ञान न रखता था। अतः जो जो थोरुपि- यन उन दिनों भारतवर्ष में थाये उन्हें संस्कृन साहित्य और खास कर वेदो के विषय में कुछ भी ज्ञान न होने पाया। इसके सिवा भारतीय विद्वान्, जो बंदो के बहुत कम यथार्थ ज्ञाता थे, बेदों को खूब छिपाने और ग्लेच्छों से बचाते रहते थे। किन्तु यह कहना अत्युक्ति न होगा कि गत १०० वर्षों में योरुप ने प्राचीन संस्कृत साहित्य को जीविन और महान बना दिया । लगभग १०० वर्ष हुम जब सर विलियम जोन्स ने शकुन्तला का अनुवाद कार्क योरुप का ध्यान संस्कृत साहित्य की तरफ आकर्षित किया। इनने अपनी भूमिका में लिखा कि "एशिया के माहित्य की प्रकाशित अद्भुन वस्तुओं में से यह एक है और यह मनुष्य की कल्पना शक्ति की उन रचनाओं में सबसे कोमल और सुन्दर है, जो किसी युग या किसी देश में कभी भी की गई हों।" इमके बाद प्रसिद्ध कवि गेटे ने भी इस नाटक की बड़ी प्रशंसा की। पर विलियम जोन्स ने इसके बाद मुशियाटिक सोसाइटी कायम की और मनु का अनुवाद किया, परन्तु वे प्राचीन संस्कृत साहित्य के भण्डार को तौभी न पा सके । वे केरल बुद्ध के पीछे के साहित्य की पोज में ही लगे रहे। कोलबुक साहब ने भी इसी दंग पर काम किया ! वे गणित के बडे विद्वान थे और योरप भर में संस्कृत के सबसे अधिक ज्ञाता थे। इनने वेदान्त, वीज गणित और हिन्दू गणित पर ग्रन्थ लिखे और अन्त मे सन् १८०५ मे सब मे प्रथम इनने योरुप को वेदों से परिचित कराया परन्तु कोलक माहव उस समय तक भी वेदों का मूल्य न जान सके । उनने लिखा था---"अनुवाद कर्ता के श्रम का फल तो दूर रहा पाठकों को मी उनके श्रम का फल कठिनता से मिलेगा।"
पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/७
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