पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/७१

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[ वेद और उनका साहित्य करके दक्षिणा लेने लगे थे। इभका वर्णन हम अन्यत्र करेंगे। कुछ वराने सृता के विशेषज्ञ-मन्य रष्टा-की तरह दीख पड़ते हैं। इन ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ "विश्वामित्र और वशिष्ठ" है।डाक्टर म्योर ने अपनी पुस्तक 'संस्कृत टेक्स्टम' के प्रथम भाग में इन ऋपियों की बहुतसी कथानो का संग्रह किया है। इन दोनों ऋपियों में विद्वेष हो गया था। इिप वा वाम्नविक कारण एक दुसरे के यजमानों की छीना झपटी थी, तथा विश्वामित्र योद्धा ऋषि से पुरोहित ऋषि बन गये थे और भृगुनों के संबंधी तथा पक्षवाले थे। इनने वशिष्ठ के यजमान सुदास के यहाँ वशिष्ट की गैरहाजिरी में यज्ञ कराया था और वहाँ वशिष्ठ पुत्रों ने पहुंच कर विश्वामित्र को खूब आई हाथो लिया था। इस प्रकार इन दोनों में सामा बैर होगया था। ऋग्वेद के मंडल ३ सू० १३ में देखिए वशिष्ठ को की हरी खरी सुनायी गयी हैं । "नाशकत्तों की शक्ति नहीं देख पडतो। लोग ऋषियों को इस तरह दुग्दाते है जैसे वे पशु हो। बुद्धिमान लोग मूहों की हँसी करने पर उतारू नहीं होते। वे घोड़े के धागे गधे को नहीं चलने देते।" (२३) "इन भारतों ने (वशियों के साथ) हेल मेल करना नही सीखा। द्वेष काना सीखा है। वे उनके सन्मुख घोड़े दौडाते हैं धनुष करते हैं।" (२४) वशिष्ठ ने म०७ सू. १०४ में उन कुवाच्यों का जवाब दिया है । "सोम दुष्टों को शुभ नहीं जो अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते है। वह उन मठो को नष्ट को, हम दोनों तो इन्द्र के श्राधीन हैं (१३) "यदि मैं यानुधान होऊँ या मैंने किसी को दु:य दिया हो नो मै अभी मर नाऊँ या जिसने मुझे झूठ मूड यातुधान कहा हो वह अपने इन सम्बन्धियों के बीच से उड नाय । (१२) "यदि मैं यानुधान नहीं, तो जिसने मुझे यह गाली दी उस धम