[ वेद और उनका साहित्य एक समय में दोपली निषेध-जैसे रथ का घोदा दो धुरों के बीच में दबा हुआ हिनहिनाता चलना है वैसे ही दो लिषों वाले की दशा होती है। न. १०। १०१ । १६ अतिथि सत्कार-जो अतिथि से प्रथम वाता है वह घर का सुख, पूरता, रस, पराकम, दि, मजा, पशु, कीर्ति, श्री, ज्ञान को खाता - अतिथि के अाने पर स्वयं खड़ा होजाय और कहे कि हे गती! भाप कहाँ से पधारे है ? यह जल है पाप नृप्त हूजिये, जो वस्तु चाहिए वह लीजिए, आपकी जो इहा होगी वही की जायगी। अ० १५ । ११1१-२। गृह प्यवस्था-यहाँ भी पकका घर बनाता हूँ। यह घर सुरक्षित रहे । इसमें हम सर घर में शूर, निरोगी पुरुष रहेंगे। इम घर इमी घर में गाय, घोड़ों का भी प्रबन्ध होगा। यह घर भी, दूध धन्न और शोभा से पूरी रहेगा। थ०३.१२ बहुन घृन होगा। धान के कोठे होंगे। इस घर में बछड़े और बच्चे खेलेगें और शाम को कूदती गायें भावगी। श्र०३।१२। चीर पुरुष-यो मनुष्यों के हिनशी ! तेरी बाहों में कल्याणकारी घन है । छाती पर तेजा भूपण है। कन्धों पर माला और शस्त्रों में तेन धार है। पक्षी के पंखों के समान तेरे बाणों की शोभा है। 4.१।११६ । १० व वायु के समान अलिष्ट, युगल भाई के समान एक सी वर्दी वाले सुन्दर, भरे और लाल रंग के घोड़ों पर बैठने वाले, निष्पाप
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