सप्तदश परिच्छेद।
हम पहले वर्णन कर चुके हैं कि अंड्रियास रोजा- बिलाको फ्लोडोआर्डो के निकट एकाकी छोड़ कर बाहर चला गया और दोनों एक प्रशस्त गवाक्ष के समीप जाकर खड़े हुये। कुछ कालोपरान्त फ्लोडोआर्डो चित्त कडा करके कहा "राजात्मजे! तुम अब भी मुझसे अप्रसन्न और रुष्ट हो?"॥
रोजाबिला―"मैं तुमसे कदापि रुष्ट नहीं हूँ, यह कहकर वह उपबन के वृत्तान्त को स्मरण करके अत्यन्त लज्जित हुई॥
फ्लोडोआर्डो―"अच्छा तो आपने मेरा अपराध क्षमा कर दिया"॥
रोजाबिला―(ईषत् हास्य करके) "तुम्हारा अपराध! निस्सन्देह! यदि अपराध था तो मैंने सम्पूर्ण क्षमा कर दिया क्योंकि जो लोग मरने के सन्निकट हों उन्हें उचित है कि औरों का अपराध क्षमा कर दें इसलिये कि इसके बदले में परमेश्वर उनके अपराधों को क्षमा करे और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं अब कुछ दिन की ही मेहमान हूँ॥
फ्लोडोआर्डो―"राजकन्यके!"
रोजाबिला। न, न, इसमें तनिक सन्देह नहीं है, मान लिया कि अभी कल पलँग परसे उठी हूँ परन्तु मैं भली भाँति जानती हूँ कि अति शीघ्र फिर गिरूँगी और इस बार मेरा जीवन समाप्त ही हो जावेगा, इस लिये (कुछ रुककर) इसी लिये मैं महाशय आपसे क्षमा प्रार्थना करती हूँ और चाहती हूँ कि प्रथम सम्मिलन के समय मैंने जो कुछ आपका अपराध किया हो उसको आप हृदय से भूल जावें॥