पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/१६८

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चतुर्विंश परिच्छेद
 

अबिलाइनो। (भर्त्सनापूर्वक) 'देखो इनका संरक्षण भली भाँति करो, तुम लोगों को आदेश मिल चुका है। (समज्या के लोगों से) महाशयो! इन्ही दुष्टात्माओं के कारण वेनिस के तीन विख्यात महाजनों का जीवन समाप्त हुआ। (उनकी ओर संकेत करके) एक, दो, तीन, चार और हमारे पादरी महाशय पाँच। परोजी और उस के सहकारी उद्विग्न और व्यग्र खड़े थे मुख पर हवाइयाँ छूट रही थीं और किसी के मुख से आधी बात भी न निकलती थी और निकले क्यों कर कहावत है कि चोर का हृदय कितना और फिर ऐसे साक्षी को झूठा कहना अत्यन्त कठिन था। इस के अतिरिक्त उन्हें यह क्या आशा थी कि अकस्मात् परमेश्वरी कोप उन पर ऐसा हो जावेगा और इस प्रकार वह आयत्त हो जावेंगे। कहाँ वह परस्पर उत्तमो- त्तम संकेतों को कर रहे थे और कहाँ कठिन पाश में बद्ध हो गये और बिवशता ने उनको जकड़ दिया। ऐसी दशा में अच्छे २ लोगों की चेतना शक्ति नष्ट हो जाती है और वेतो अपराधी ही थे। अकेले उन्हीं की यह गति न थी बरन जितने लोग वहाँ विद्य- मान थे चकित और चमत्कृत से हो कर यह कौतुक देखते और एक दूसरे से पूछते थे परन्तु कोई उसके मुख्य भेद से अभिज्ञ न था। कुछ देर बाद जब पादरी महाशय की चेतना शक्ति कुछ ठीक हुई तो उन्हों ने कहा 'महोदय! यह व्यर्थ हम लोगों को लिये मरता है। भला हम लोगों को इन बातों से क्या संबंध है, महाराज यह सर्वथा कपट और छल है। अब इस ने यह सोचा है कि मैं तो डूबताही हूँ औरों को भी क्यों न निज साथी कर लूँ, ईश्वर का शपथ है कि यह सर्वथा बनावट और कलंक है।'

काण्टेराइनो। 'अपने जीवन में इस ने बहुतेरे लोगों का प्राण हरण किया है अब मरते समय भी दो चार को अपने साथ ले मरना चाहता है।'