भारतेन्दु-हरिश्चन्द्र कृत
मुद्राराक्षस सटीक
[सं॰ बजरत्नदास बी॰ ए॰]
भारत-भूषण भारतेन्दु बा॰ हरिश्चन्द्रजी वर्तमान हिन्दी-साहित्य- के जन्मदाता माने जाते हैं। आपने जो काम हिन्दी-जगत का किया है, उसे हिन्दी भाषी यावज्जीवन भूल नहीं सकते। आपने महाकवि विशा- खदत्तके संस्कृत नाटक मुद्राराक्षस को अनुवाद गद्य-पद्यमय हिन्दी भाषा में किया है। यह अनुवाद मूल ग्रन्थसे कितना ही आगे बढ़गया है, इसमें मौलिकता आगयी है। यह नाटक इतना लोकप्रिय हुआ है कि भारत की प्रायः सभी यूनिवर्सिटियों तथा साहित्य-विद्यालयों में पाठ्य ग्रन्थ रखा गया है। हमने विद्याथियों के लाभार्थ इसी पुस्तक का शुद्ध तथा उपयोगी संस्करण निकाला है। आजकल बाजार में जो संस्करण बिक रहा है, वह अत्यन्त अशुद्ध है। उससे लाभके बदलें उल्टी हानिही होती है। इस संस्करण में अध्येताओं के लिए ८० अस्सी पृष्टकी अलो- चनात्मक भूमिका भी प्रारम्भमें दे दी गयी है, जिसमें कवि प्रतिभा, नाटक का इतिहास, लेखन शैली आदिपर गवेष्णापूर्ण आलोचना की गयी है। अन्तमे करीब १५० डेड सौ पृष्ठों में भरपूर टिप्पणी दी गयी है, जिसमें नाटक में आये हुए पद्यांशोंकी पूरी टीका तथा गद्यांशों के कठिन शब्दोंके अर्थ दिये गये हैं, अलंकार आदि बतलाये गये हैं, स्थल स्थलपर तुलना के लिए संस्कृत मूल भी उद्धृत किये गये है, प्रमाणके लिए साहित्य-दर्पण काव्य-प्रकाश आदि ग्रन्थों के अवतरण भी दिये गये हैं। कहने का मतलब यह कि सभी आवश्यकीय बातें समझा दी गयी हैं। इसका संशोधन पं॰ रामचन्द्र शुक्ल तथा बा॰ श्यामसुन्दर दासजी बी॰ ए॰ प्रो॰ हिन्दुविश्वविद्यालयने किया है। संपादन नागरी- प्रचारिणी सभा के मन्त्री ब्रजरपदासजी बी॰ ए॰ ने किया है। पृष्ठ-संख्या ३५० के लगभग मूल्य १) मात्र।