स्थायी गाहकों के लिए नियम―
[१] ग्राहक बनने के लिए बारह आना प्रवेश शुल्क देना पड़ता है।
[२]ग्राहकों को इस कार्यालय के समस्त पूर्व प्रकाशित तथा आगे प्रकाशित होनेवाले ग्रन्थों की एकएक प्रतिपौने मूल्य में दी जाती हैं।
[३] किसी भी पुस्तक का लेना अथवा न लेना ग्राहकों की इच्छा पर निर्भर है। किन्तु वर्ष भर में कमसे कम तीन रुपये [ पूरे मूल्य ] की पुस्तकें लेनी पड़ती हैं।
[४] किसी भी पुस्तक के प्रकाशित होते ही, मूल्यादि की सूचना दे देने के पन्द्रह दिवस पश्चात् उसकी वी॰ पी॰ भेज दी जाती है। यदि किसी ग्राहक को कोई पुस्तक न लेनी हो तो सूचना पाते ही मनाही कर देना चाहिए, ताकि वह न भेजी जाय। वी॰ पी॰ लौटाने से डाक-व्यय उन्हीं को देना पड़ेगा, अन्यथा उनका नाम ग्राहक-श्रेणी से पृथक कर दिया जायगा।
[५] ग्राहकों के इच्छानुसार डाक-व्यय के बचावके लिए ३-४ पुस्तकें एक साथ भेजी जा सकती हैं।
[६] सदनके ४ स्थायी ग्राहक बनानेवाले सज्जन को यदि वे चाहेंगे तो, बिना किसी प्रकारका शुल्क लिए ही स्थायी ग्राहक- के कुल अधिकार दिये जायेंगे। इसी प्रकार १० स्थायी ग्राहक बनाने वाले सजन को, यदि वे स्वीकार करें तो, तीन रुपये मूल्य की सदन द्वारा प्रकाशित कोई भी पुस्तक या पुस्तक प्रदान की जायँगी, और २५ स्थायी ग्राहक बनाने वाले महा- नुभावका नाम आगे प्रकाशित होनेवाली पुस्तक में सधन्यवाद प्रकाशित कर दिया जायगा।
[७] पत्र भेजे यदि १० दिन हो जायँ और उसका कोई उत्तर न मिले, तो शीघ्र ही दूसरा पत्र भेजना चाहिए।
सूचना―ग्राहको को प्रत्येक पत्र में अपना ग्राहक-नम्बर, पता इत्यादि स्पष्ट लिखना चाहिए।