पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/२६

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दूसरा परिच्छेद
 

शीर्ण वस्त्र धारण किये इस नगर में मारामारा फिर रहा हूं जहां निश्शीलता ने अपना भवन निर्माण किया है, और कठोरता ने दीनों की आशा उन्मूलन करने का बीड़ा उठाया है। सहस्रशः बार बुद्धि दौड़ाता हूं तथापि क्षुधा के शृङ्खल और काल के मुख से बचने की कोई युक्ति नहीं सूझती। वही लोग जो कल मेरी वदान्यता से जीवित थे, मेरे पाकालय में निज नियमाण चित्तों को उत्तम से उनम सुरा से प्रफुल्लित करते थे, और विश्व के सुहावने व्यञ्जनों पर हाथ मारते थे आज मुझ प्रभागे को एक टुकड़ा रोटी देने से भी मुख मोड़ते हैं । इस कठोरता और निर्दयता का कुछ ठिकाना है! मनुष्य तो मनुष्य कदाचित्प रमेश्वर ने भी मुझे भुला दिया।"

इतना कह कर वह चुप हो रहा, प्रालिबद्ध होकर कुछ सोचने लगा, और फिर एक ऊँची सांस भरकर बोला "अच्छा! अब जो कुछ होता हो सोहो मैं अपने भाग्य पर सन्तुष्ट हूं, जो जो आपदा शिर पर भायेगी उसे झेलूगा, विधि जैसा जैसा नाच नचायेगा नाचंगा, भाग्य भी अपनी सी कर ले, परन्तु मैं अपने आपको न भूलूंगा, और भाग्य सहानुभूति करे या न करे मैं काम चढ़ बढ़ कर ही करूंगा। अब युवराज रुसाल्वो जिसे एक समय सम्पूर्ण नेपल्स पूजता था कहां रहा अब-अब तो मैं अकिंचन् अविलाइनों हूँ। परन्तु यद्यपि मैं अन्तिम श्रेणी पर हूं तथापि मेरा नाम दरिद्रों, भुखमरों पेटुओं और अयोग्यों की तालिका के शिरो भाग में संयोजित है।

इतने में किसी की आहटसी ज्ञात हुई। फिर कर देखता क्या है कि वही डाकू जिसे उसने दे मारा था, और दो मनुष्य और, उसी ढंग के, इस रीति से चारों ओर देखते भालते चले आते हैं जैसे किसी को खोज रहे हैं। अविलाइनों ने अपने जी में कहा “हो न हो वे तेरे ही अनुसन्धान में हैं" फिर कई