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पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/४२

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पांचवां परिच्छेद
 

ऐसी ही धवल-निशा में मैंने पहले पहल वलीरिया के शोणाधर का चुम्बन किया था और उसी शुभ दिवस को उसने कोकिलालाप से कथन किया कि मैं तुमको चाहती हूँ"। इतना कथन कर वह चुप हो रहा और उन्हीं शोकमय विचारों पर जो उसके मस्तिष्क में समाये हुए थे तर्क वितर्क करने लगा। उस समय सन्नाटे की यह अवस्था थी कि बायु की सनसनाहट तक का परिज्ञान न होता था परन्तु अबिलाइनों के अन्तःकरण में एक शोकका प्रचंड-प्रभंजन उठ रहा था।" चार वर्ष का समय हुआ कि मुझको इस बात का अणुमात्र भी ज्ञान न था कि एक दिन मैं वेनिस में डाकुओं का काम करूंगा? न जाने वह दिन क्या हुए जब कि बड़ी बड़ी आशायें और भारी भारी कामनायें मेरे हृदय में उमड़ती थीं। इस समय मैं एक डाकू हूँ जिससे भिक्षा मांगना कहीं उत्तम है। नारायण! नारायण!! वह भी एक समय था जब कि मेरे पितृ चरण स्नेह की उमंग में मेरी ग्रीवा में हाथ डाल कर कहा करते थे 'बेटा तू रुसाल्वो का नाम संसार में प्रख्यात करेगा, और मैं वस्त्रों में फूला नहीं समाता था, कैसे कैसे विचार उस समय अन्तःकरण में उप्तन्न होते थे, क्या क्या न मैं सोचता था! और कौन ऐसा महत् कर्म और उत्कृष्ट कार्य था जिसके करने की अपने मन में कामना न करता था! हा हन्त! पिता तो स्वर्गवासी हुआ और पुत्र वेनिस में डाकू का काम करता है। जब मेरे शिक्षक मेरी प्रशंसा करते और उमंग में आकर मेरी पीठ ठोकते और कहते थे युवराज! तेरे कारण रुसाल्वो के प्राचीन-वंश का नाम सदैव स्मरण रहेगा, तो मुझे एक स्वप्न सदृश वह अवस्था ज्ञात होती और उस की तरंग में आगामी समय उत्तमोत्तम दृष्टि गोचर होता। जिस समय कोई बड़ा कार्य करके मैं गृह को पलट आता।