परोजी―"परमेश्वर का कोप उन दुष्टात्माओं पर"।
मिमो―"क्या तुम डाकुओं को कोस रहे हो"॥
परोजी―"अजी कुछ न पूछो उन मन्दभाग्यों का तनिक अनुसन्धान नहीं लगता, मेरा तो आकुलतासे श्वासावरोध हो रहा है"।
फलीरी―"और इस बीच समय हाथ से निकला जाता है। यदि कहीं हमारा भेद खुल गया तो फिर हम होंगे और कारागार। सब लोग हमारा परिहास करेंगे और ताली बजावेंगे। मेरा जी तो ऐसा झुँझलाता है कि अपने हाथों अपना मुख नोच डालू" इस समालाप के उपरांत कुछ काल पर्यन्त एक सन्नाटा सा छा गया।
परोजी (क्रोध से पृथ्वी पर हाथ पटक कर) फ्लोडोआर्डो फ्लोडोआर्डो!!
फलीरी―"दो घड़ी में मुझे पादरी गान्जेगा के समीप जाना है तो मैं उनसे जाकर क्या कहूँगा"?
मिमो―"अजी घबराओ नहीं कांटेराइनो का इतनी देर तक न आना किसी प्रयोजनीय घटना से सम्बन्ध रखता है विश्वास करो कि वह कुछ न कुछ समाचार अवश्यमेव लावेगे"।
फलीरी―"राम! राम! मैं प्रण करके कहता हूँ कि वह इस समय उलिम्पिया के चरणों पर शिर रखे हुये अश्रुप्रवाह करते होंगे भला उन्हें हम लोगोंकी अथवा इस राज्य की अथवा डाकुओं की अथवा अपनी कब सुध होगी"।
परोजी―"भला तुम लोगों में से कोई इस फ्लोडोआर्डो का कुछ भी भेद नहीं जानता"।
मिमो―"बस उतना ही जितना कि रोजाबिला की वर्ष- ग्रन्थिके दिवस देखने में आया"।
फलीरी―"परन्तु मैं उसके विषय में इतना और जानता