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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/१२९

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षष्ठ सर्ग

वाल्मीकाश्रम में जाकर ।
कब तक तुम वहाँ रहोगी ।।
यह ज्ञात नही तुमको भी।
कुछ कैसे भला कहोगी ।।५८।।

दस पॉच बरस तक तुमको।
जो रहना पड़ जायेगा ।।
'विच्छेद' बलाये कितनी।
हम लोगों पर लायेगा ।।५९।।

कर अनुगामिता तुमारी।
सुखमय है सदन हमारा ।।
कलुषित - उर में भी बहती-
रहती है सुर - सरि - धारा ॥६०॥

जो उलझन सम्मुख आई।
उसको तुमने सुलझाया ॥
जो ग्रंथि न खुलती, उसको-
तुमने ही खोल दिखाया ॥६१।।

अवलोक तुमारा आनन ।
है शान्ति चित्त में होती ।।
हृदयों मे बीज सुरुचि का।
है सूक्ति तुमारी बोती ॥६२।।