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सप्तम सर्ग

अनुष्ठिता मांगलिक सुयात्रा।
भला न क्यों सिद्धि को बरेगी।
समस्त - जनता प्रफुल्ल हो जो।
अपूर्व - शुभ - कामना करेगी ॥३४॥

कृपा दिखा आप लोग आये।
कुशल मनाया, हितैपिता की।
विविध मांगलिक - विधान द्वारा।
समर्चना की दिवांगना की ॥३५॥

हुई कृतज्ञा - अतीव आर्या ।
विशेष हैं धन्यवाद देती ।।
विनय यही है वढ़ें न आगे।
विराम क्यों है ललक न लेती ॥३६।।

बहुत दूर आ गये ठहरिये ।
न कीजिये आप लोग अब श्रम ॥
सुखित न होंगी कदापि आर्या ।
न जायेंगे आप लोग जो थम ॥३७॥

कृपा करे आप लोग जाये ।
विनम्र हो ईश से सनावे ॥
प्रसव करे पुत्र - रत्न आर्या ।
मयंक नभ - अंक में उगावे ॥३८॥