पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/१५

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बाबा आदम के एक लड़के का नाम 'हाबील' था और दूसरे का नाम 'क़ाबील, दूसरे ने पहले को जान से मार डाला। इस दुर्घटना पर बाबा आदम के शोक संतप्त हृदय से अनायास जो उद्गार निकला, वही करुण वाक्य कविता का आदि प्रवर्त्तक बना। उक्त शेर का यही मर्म्म है। हमारे मन ही मुसलमान और ईसाइयो के 'आदम, हैं। 'मनुज' और 'आदमी' पर्य्यायवाची शब्द हैं, जैसे हम लोग मनु भगवान को आदिम पुरुष मानते हैं, वैसे ही वे लोग 'बाबा आदम' को आदिम पुरुष कहते हैं। आदिम शब्द और आदम शब्द में नाम मात्र का अन्तर है। फारसी ईरान की भाषा है। ईरानी एरियन वंश के ही हैं। ईरानियों के पवित्र ग्रंथ जिन्दावस्ता में संस्कृत शब्द भरे पड़े हैं। इसलिये इस प्रकार का विचार साम्य असंभव नहीं है। भाषा के साथ भाव-ग्रहण अस्वाभाविक व्यापार नही है।

पद्य प्रणाली का जो जनक है, वाल्मीक-रामायण जैसे लोकोत्तर महाकाव्य की रचना का जो आधार है, उस करुण रस की महत्ता की इयत्ता अविदित नहीं। तो भी संस्कृत श्लोक के भाव का प्रतिपादन एक अन्यदेशीय प्राचीन भाषा द्वारा हो जाने से इस विचार की पुष्टि पूर्णतया हो जाती है कि करुण रस द्वारा ही पहले पहल कविता देवी का आविर्भाव मानव हृदय में हुआ है। और यह एक सत्य का अद्भुत विकास है।

करुण रस की विशेषताओं और उसकी मर्मस्पर्शिता की ओर मेरा चित्त सदा आकर्षित रहा, इसका ही परिणाम 'प्रियप्रवास'