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त्रयोदश सर्ग
वर विलासमय बन वासर था विलसता।
रजनी पल पल पर थी अनुरंजन - रता॥
यदि विनोद हँसता मुखड़ा था मोहता।
तो रसराज रहा ऊपर रस बरसता ॥३९।।
पितृ - सद्म - ममता न भूल मन जिस समय ।
ससुर - सदन मे शनैः शनैः था रम रहा।
उन्ही दिनों अवसर ने आकर आपसे ।
समाचार पति राज्यारोहण का कहा ॥४०॥
आह । दूसरे दिवस सुना जो आपने।
किसका नही कलेजा उसको सुन छिला ।।
कैकेई - सुत राज्य पा गये राम को।
कानन - वास चतुर्दश - वत्सर का मिला ।।४१।।
कहाँ किस समय ऐसी दुर्घटना हुई।
कहते हैं इतिहास कलेजा थामकर ।।
वृथा कलंकित कैकेई की मति हुई।
कहते है अब भी सब इसको आह भर ।।४२।।
आपने दिखाया सतीत्व जो उस समय ।
वह भी है लोकोत्तर, अद्भुत है महा ॥
चौदह सालों तक वन मे पति साथ रह ।
किस कुल - बाला ने है इतना दुख सहा ।।४३।।