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मंत्रणा गृह में प्रातःकाल ।
भरत लक्ष्मण रिपुसूदन संग ।।
राम बैठे थे चिन्ता - मग्न ।
छिड़ा था जनकात्मजा प्रसंग ॥१॥
कथन दुर्मुख का आद्योपान्त ।
राम ने सुना, कही यह बात ।।
अमूलक जन - रव होवे किन्तु ।
कीर्ति पर करता है पविपात ॥२॥
हुआ है जो उपकृत वह व्यक्ति ।
दोप को भी न कहेगा दोप ।।
बना करता है जन - रव हेतु ।
प्रायग. लोक का असन्ताप ॥३॥