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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/६८

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तृतीय सर्ग
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मन्त्रणा गृह
चतुष्पद

मंत्रणा गृह में प्रातःकाल ।
भरत लक्ष्मण रिपुसूदन संग ।।
राम बैठे थे चिन्ता - मग्न ।
छिड़ा था जनकात्मजा प्रसंग ॥१॥

कथन दुर्मुख का आद्योपान्त ।
राम ने सुना, कही यह बात ।।
अमूलक जन - रव होवे किन्तु ।
कीर्ति पर करता है पविपात ॥२॥

हुआ है जो उपकृत वह व्यक्ति ।
दोप को भी न कहेगा दोप ।।
बना करता है जन - रव हेतु ।
प्रायग. लोक का असन्ताप ॥३॥