पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१६१

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अपना काम कर चुका होगा तथा सेनापति को द्वार उन्मुक्त मिलेगा। मैं अब चला, आपका कल्याण हो!"

सोम आवश्यक व्यवस्था में जुट गए और उनके आदेश को ले-लेकर उनके साहसी भट दांतों में खड्ग दबाए सिंहद्वार के चारों ओर को पेट के बल खिसकने लगे। सब कुछ निःशब्द हो रहा था।

बाहुक ने सिंहपौर पर लड़खड़ाते हुए पहुंचकर कहा—"तुम्हारा कल्याण हो सामन्त, किन्तु इसमें किसी का हिस्सा नहीं है।" उसने मद्यपात्र मुंह में लगाकर मद्य पिया।

एक प्रहरी ने हंसकर कहा—"अरे बाहुक, तुम हो? आज तो रंग है, कहां से लौट रहे हो?"

"रंगमहल से मित्र। बहार है। वहां वह पशुपुरी की अप्सरा आई है।"

कई प्रहरी जुट गए—"कौन आई है सामन्त?"

"चुप रहो, गुप्त बात है। पशुपुरी की रम्भा। महाराज आज पान-नृत्य में व्यस्त हैं। प्रहरियों को भी प्रसाद मिला है, यह देखो।"

"वाह-वाह, तो सामन्त, एक चषक हमें भी दो।"

"वहां जाओ और ले आओ। इसमें किसी का हिस्सा नहीं है।" उसने फिर पात्र मुंह में लगाया और एक ओर को लुढ़क गया।

एक प्रहरी ने मद्यपात्र छीनकर कहा—"वाह मित्र, हमें क्यों नहीं? अरे वाह, अभी बहुत है। पियो मित्रो! तेरी जय रहे सामन्त!"

सब प्रहरी मद्य ढालने लगे। बाहुक ने एक प्रेम-गीत गाना प्रारम्भ कर दिया। पीलू के स्वर उस टूटती रात में मद्य के घूंटों के साथ ही प्रहरियों के हृदयों को आन्दोलित करने लगे।

एक ने कहा—"सामन्त, वह पशुपुरी की अप्सरा देखी भी है?"

"देखी नहीं तो क्या, अरे! वह ऐसा नृत्य करती है और देव को मद्य ढालकर देती है—देखोगे?"

"वाह सामन्त, क्या बहार है। नाचो तो तनिक, उसी भांति मद्य ढालकर दो तो।"

बाहुक दोनों हाथ ऊंचे करके नृत्य करने लगा और नृत्य करते-करते उसने मद्य ढाल-ढालकर प्रहरियों को पिलाना आरम्भ कर दिया। प्रहरी उन्मत्त हो उठे—कई तो बाहुक के साथ नाचने लगे और कई उसके स्वर के साथ स्वर मिलाकर गाने लगे। मद्य-भाण्ड रिक्त हो गया।

सब मद्य प्रहरियों के उदर में पहुंच गया। तब बाहुक मद्य-भाण्ड को पेट पर रखकर लेट गया और पात्र को ढोल की भांति पीट-पीटकर बजाने और कोई विरह-गीत गाने लगा। प्रहरी हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए और उस विशिष्ट मद्य के प्रभाव से फिर गहरी नींद में अचेत हो गए। बाहुक ने सावधान होकर प्रथम आकाश के नक्षत्र को, फिर चारों ओर अन्धकार से परिपूर्ण दिशाओं को देखा। अब चार दण्ड रात्रि व्यतीत हो रही थी।