पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

कुछ देर बाद स्निग्ध स्वर में कहा—"ठीक है मधु, सान्ध्य कृत्य का समय हो गया। चलो, अब भीतर चलें। परन्तु मधु, आज एक सम्भ्रांत अतिथि आने वाले हैं। वे गंगा की राह आएंगे या राजमार्ग से, यह नहीं कहा जा सकता। दोनों ही मार्ग अगम्य हैं, परन्तु वे आएंगे अवश्य, तुम उनकी प्रतीक्षा करना और उनके विश्राम आदि की यत्न से सम्यक् व्यवस्था कर देना, तथा उषाकाल में उन्हें मेरे पास गर्भगृह में ले आना।"

बटुक ने मस्तक नवाकर आदेश ग्रहण किया। फिर आगे-आगे भगवान् वादरायण व्यास और उनके पीछे वह ब्रह्मचारी, दोनों मठ की ओर चल दिए।