वृद्ध ने तरुण को छाती से लगाकर कहा—"अरे पुत्र, मैंने तो तुझे अपने घुटनों पर बैठाकर खिलाया है। आह, आज मैं बड़भागी सिद्ध हुआ। नायक के दर्शन हो सकेंगे तो?"
"अवश्य, पर अब वे हिल-डुल नहीं सकते। पक्षाघात से पीड़ित हैं। भन्ते, किन्तु आप मुझे क्षमा दीजिए।"
"इसकी कुछ चिन्ता न करो आयुष्मान्! तो, मैं कल प्रात:काल मित्र चन्द्रमणि से मिलने आऊंगा।"
"कल? नहीं-नहीं, अभी! मैं अच्छी तरह जानता हूं, आप थके हुए हैं और वह बालिका...कैसी लज्जा की बात है! भन्ते, मैंने गुरुतर अपराध...। वृद्ध ने हंसते-हंसते युवक को फिर छाती से लगाकर उसका क्षोभ दूर किया और कहा—"वह मेरी कन्या अम्बपाली है।"
"मैं समझ गया भन्ते, पितृकरण ने बहुत बार आपके विषय में चर्चा की है। चलिए अब घर! रात्रि आप यों राजपथ पर व्यतीत न करने पाएंगे।"
महानामन् ने और विरोध नहीं किया। बालिका को जगाकर दोनों तरुणों के साथ उन्होंने धीरे-धीरे नगर में प्रवेश किया।