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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१९५

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प्राण और प्रतिष्ठा लेकर भागो।"

"तो हम लोग साथ ही मरें।"

"नहीं राजनन्दिनी, इस अधम का मोह न करो, प्राण लेकर भागो।"

"किन्तु मैं तुम्हें..."

"ओह कुमारी, कुछ मत कहो, जीवन रहा तो फिर मिलेंगे।"

"पर मैं जीते जी तुम्हें नहीं छोड़ सकती।"

वह सोम के शरीर से लिपट गई।

सोम ने सूखे कण्ठ से कहा—"तुम्हें भ्रम हुआ है कुमारी, मैं मागध हूं तुम्हारा शत्रु।"

मार्ग में पड़े हुए सर्प को अकस्मात् देखकर जैसे मनुष्य चीत्कार कर उठता है, उसी भांति चीत्कार करके कुमारी सोम को छोड़कर दो कदम पीछे हट गई और भीत नेत्रों से सोम की ओर देखने लगी।

सोम ने कुण्डनी को संकेत किया और एक चट्टान का ढासना लेकर धनुष संभाला। कुमारी की ओर से उसने मुंह फेर लिया और धनुष पर तीर चढ़ाते हुए कहा—"शम्ब, तुम दाहिने, मैं बाएं।"

परन्तु सोम बाण लक्ष्य पर न छोड़ सके। धनुष से बाण छटकर निकट ही जा गिरा। उधर सोम एकबारगी ही बहुत-सा रक्त निकल जाने से मूर्छित हो गए। उनकी आंखें पथरा गईं और गर्दन नीचे को लुढ़क गई।

शम्ब ने एक बार स्वामी को और फिर शत्रु को भीत दृष्टि से देखा। सामने कुण्डनी एक प्रकार से राजकुमारी को घसीटती हुई अश्व पर सवार करा अपने और कुमारी के अश्व को संभालती चट्टान के मोड़ पर पहुंच चुकी थी। राजकुमारी अश्व पर मृतक की भांति झुक गई थीं। शत्रु घाटी के इस पार आ चुके थे। कुण्डनी ने एक बार शंब की ओर देखा। शंब ने उसे द्रुत वेग से भागने का संकेत करके सोम को कन्धे पर उठा लिया और वह तेजी से पर्वत-कन्दरा की ओर दौड़ गया। एक सुरक्षित गुफा में सोम को लिटा, आप धनुष-बाण लेकर गुफा के द्वार पर बैठ गया।

परन्तु इतनी तत्परता, साहस एवं शौर्य भी कुछ काम न आ सका। शत्रुओं ने शीघ्र ही राजकुमारी और कुण्डनी को चारों ओर से घेर लिया। भागने का प्रयास व्यर्थ समझकर कुण्डनी अब मूर्छिता कुमारी की शुश्रूषा करने लगी।

दस्युओं में से एक ने आगे बढ़कर दोनों के अश्व थाम दिए। चन्द्रमा के क्षीण प्रकाश में अश्वारोहियों को देखकर प्रसन्न मुद्रा से उसने कहा—

"वाह, दोनों ही स्त्रियां हैं!"

दूसरे ने निकट आकर कहा—

"और परम सुन्दरियां भी हैं। मालिक को अभी-अभी सूचना देनी होगी।" उसने राजकुमारी को देखकर कहा—"मालिक ऐसी ही एक दासी की खोज में थे।" एक पुरुष ने चकमक झाड़कर प्रकाश किया और कुण्डनी से पूछा—

"कौन हो तुम?"

"राही हैं, देखते नहीं?"

"देख रहे हैं, तुम्हारे वे साथी कहां हैं, जिन्होंने हमारे इतने आदमी मार डाले हैं?"