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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१९७

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50. श्रावस्ती

श्रावस्ती उन दिनों जम्बूद्वीप पर सबसे बड़ा नगर था। कोसल महाराज्य के अन्तर्गत साकेत और वाराणसी ये दो महानगर भी महासमृद्धशाली थे, परन्तु श्रावस्ती की उनसे होड़ न थी। साकेत बहुत दिन से कोसल की राजधानी न रही थी। इस समय उसका महत्त्व केवल इसलिए था कि वह उत्तरापथ के प्रशस्त महाजनपथ पर थी तथा उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के सार्थवाह, जल-थल दोनों ही मार्गों से, साकेत होकर जाते थे।

परन्तु श्रावस्ती में समस्त जम्बूद्वीप ही की संपदाओं का अगम समागम था। यहां अनाथपिण्डिक सुदत्त और मृगार जैसे धनकुबेरों का निवास था, जिनके सार्थ जम्बूद्वीप ही में नहीं, ताम्रलिप्ति के मार्ग से बंगाल की खाड़ी और भरु-कच्छ तथा शूर्पाटक से अरब-सागर को पारकर सुदूर द्वीपों में जाते और संपदा विस्तार करते थे। श्रावस्ती से प्रतिष्ठान तक का मार्ग माहिष्मती, उज्जैन, गोनर्द, विदिशा, कौशाम्बी और साकेत होकर था। श्रावस्ती से राजगृह का मार्ग पहाड़ की तराई होकर था। मार्ग में सेतव्य, कपिलवस्तु, कुशीनारा, पावा, हस्तिग्राम, भण्डग्राम, वैशाली, पाटलिपुत्र और नालन्दा पड़ते थे। पूर्व से पश्चिम का मार्ग बहुत करके नदियों द्वारा तय होता था। गंगा में सहजाति और यमुना में कौसाम्बी तक बड़ी-बड़ी नावें चलती थीं। सार्थवाह विदेह होकर गान्धार तक और मगध होकर सौवीर तक, भरुकच्छ से बर्मा तक और दक्षिण होकर बेबीलोन तक तथा चंपा से चीन तक जाते-आते थे। रेगिस्तानों में लोग रात को चलते थे और पथप्रदर्शक नक्षत्रों के सहारे मार्ग का निर्णय करते थे।

सुवर्णभूमि से लेकर यवद्वीप तक, तथा दक्षिण में ताम्रपर्णी तक आना-जाना था। श्रावस्ती महानगरी में हाथी-सवार, घुड़सवार, रथी, धनुर्धारी आदि नौ प्रकार की सेनाएं रहती थीं। कोसल राज्य की सैन्य में यवन, शक, तातार और हूण भी सम्मिलित थे। यवनों को ऊंचे-ऊंचे सेनापति के पद प्राप्त थे। उच्चवर्गीय सेट्ठियों, सामन्तों, श्रमणों और श्रोत्रिय ब्राह्मणों के अतिरिक्त दास, रसोइए, नाई, उपमर्दक, हलवाई, माली, धोबी, जुलाहे, झौआ बनानेवाले, कुम्हार, मुहर्रिर, मुसद्दी और कर्मकार भी थे।

कर्मकारों में धातु, लकड़ी और पत्थर पर काम करनेवाले, चमड़े, हाथीदांत के कारीगर, रंगाईवाले, जौहरी, मछली मारनेवाले, कसाई, चित्रकार आदि अनगिनत थे। रेशम, मलमल, चर्म, कारचोबी का काम, कम्बल, औषधि, हस्तिदन्त, जवाहर, स्वर्णाभरण आदि के अनगिनत व्यापारी थे।

जातियों में ब्राह्मण-महाशाल, क्षत्रिय सामन्तों का उच्च स्थान था। इनके बाद सेट्ठिजन थे, जो धन-सम्पदा में बहुत चढ़े-बढ़े थे। देश-विदेश का धन-रत्न इनके पास खिंचा चला आता था। उन दिनों देश में दस प्रतिशत ये सामन्त ब्राह्मण और नब्बे प्रतिशत सेट्ठिजन सर्वसाधारण की कमाई का उपयोग करते थे। इन 90 प्रतिशत में 20 प्रतिशत तो