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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२५०

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लाई क्यों थीं ? " “ मैंने उनका विपत्ति से उद्धार किया था । " " तो अब भी उद्धार करो। " “ कर सकती हूं, परन्तु तुम्हारी योजना पर नहीं, अपनी योजना पर। " “ वह क्या है ? " “ कहती हूं ; पहले यह कहो कि तुम साहस कर सकते हो ? " “ मेरा यह खड्ग तुम देखती नहीं ? " “फिर खड्ग ! अरे भाई, खड्ग का यहां काम नहीं है। " “ तब? ” " कौशल का है। " “ क्या असुरपुरी का वही मृत्यु - चुम्बन ? " “नहीं -नहीं सोम , यह असुरपुरी नहीं, कोसल महाराज्य की राजधानी श्रावस्ती है । जानते हो , यदि यहां यह पता लग जाय कि हम मागध हैं , तो चर होने के संदेह में हमें शूली चढ़ना होगा। " " तो फिर कहो भी , तुम्हारी योजना क्या है? " " हम मागध हैं पराजित मागध ! " “ मैं अस्वीकार करता हूं । " "व्यर्थ है। यह कहो कि साहस कर सकोगे ? " " अच्छा करूंगा। कहो, क्या करना होगा ? कुण्डनी हंस दी - " हां ठीक है ; इसी भांति मेरे अनुगत रहो । ” सोम को भी हंसना पड़ा। उसने कहा - " तो अनुगृहीत भी करो। " “ वही तो कर रही हूं। " “ क्या करना होगा कहो? " " तुम्हें मेरे साथ अन्तःपुर में प्रवेश करना होगा। " " कैसे ? " " स्त्री - वेश में । " " अरे! यह कैसे होगा ? " " चुपचाप मेरी योजना पर विश्वास करो । वस्त्र मैं जुटा दूंगी । कहो, कर सकोगे ? " सोम ने हंसकर कहा - " तुम्हारे लिए यह भी सही कुण्डनी ! " " मेरे लिए नहीं भाई, राजनन्दिनी के लिए। " “ ऐसा ही सही । " " अच्छा , अब चलो मेरे साथ। " “ कहां ? " " जहां आर्य अमात्य हैं ? ” “ अमात्य क्या यहां हैं ? और सम्राट ? " " वे राजगृह पहुंच गए हैं । " " उनके पास अभी चलना होगा ? "