“ किन्तु कदाचित् कौशाम्बी के महामात्य यौगन्धरायण मगध - सम्राट् की प्रसन्नता की उतनी चिन्ता नहीं करते। ” । ___ " क्यों नहीं ! मगध के महामहिम अमात्य वर्षकार भली- भांति जानते हैं कि मागध मित्रता की प्राप्ति के लिए ही मैंने युक्तिपूर्वक देवी वासवदत्ता को छल से मृतक घोषित करके मगधनन्दिनी पद्मावती का विवाह कौशाम्बीपति से कराया था । मगध - सम्राट् की प्रसन्नता की कौशाम्बीपति को उतनी ही आवश्यकता है मित्र , जितनी मगध- सम्राट को कौशाम्बीपति की मित्रता की । " । ___ “ सुनकर आश्वस्त हुआ मित्र! आपको विदित ही होगा , इसी से असन्तुष्ट होकर अवन्तीनरेश ने मगध पर अभियान किया है । कलिंगसेना से उदयन महाराज का विवाह मगध- सम्राट् को भी अभीष्ट नहीं था । " ___ यौगन्धरायण ने हंसकर कहा - “ सम्राट् को कौशाम्बीपति की गान्धार राज्य की मैत्री से पश्चिमोत्तर दिशा से भय - ही - भय है, तो मित्र , सम्राट की इस महत्त्वाकांक्षा में कौशाम्बी राज्य बाधक नहीं है । सच पूछिए तो कौशाम्बीपति को विश्वास था कि मगध अभियान कोसल राज्य के जीर्ण- शीर्ण ढांचे को अकेला ही ढहा देगा। " __ “ सो मित्र यौगन्धरायण, मागध अभियान अभी समाप्त नहीं है । अभी वर्षकार जीवित है। " __ “ वयस्य वर्षकार का प्रबल प्रताप मुझे विदित है। मुझे सुख है कि मुझे और कौशाम्बीपति को उसकी और मगध- सम्राट् की मित्रता प्राप्त है । " मगध -सम्राट् सदैव कौशाम्बीपति को मित्र समझते हैं । " “ महाराज यह सुनकर सुखी होंगे । तो मित्र , अब स्वस्ति ! " " स्वस्ति मित्र , स्वस्ति ! " आर्य यौगन्धरायण चले गए और उसके कुछ ही देर बाद आर्य वर्षकार गुहाद्वार से निकले। बाहर आकर उन्होंने कुछ संकेत किया । एक चर ने आकर उनके कान में धीरे - धीरे कुछ कहा। आर्य वर्षकार ने नेत्रों से संकेत प्रकट कर कहा - “ अब तुम अपने कार्य में लगो सौम्य ! मेरा अश्व तैयार है ? " “ जी हां आर्य! ” " ठीक है। ” वे उत्तरीय से शरीर को अच्छी तरह लपेट एक ओर को चल दिए ।
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