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पड़ी । कुण्डनी ने कहा- “सोम, मैं किसी भांति कल तक अन्तःपुर में रह जाऊंगी। तुम अभी जाओ और प्रातःकाल ही भगवान् से मिलो। " “किन्तु...? ” “जाओ सोम , किन्तु सिंहद्वार से नहीं। प्रमोदवन के बाहर -बाहर वृक्षों की आड़ में , वाटिका के मध्य में जो वापी है, वहां जाओ। वहां स्त्री - वेश त्याग , वृक्ष पर चढ़ किसी शाखा के सहारे प्राचीर को लांघ जाना। परन्तु यदि तीन दण्ड दिन चढ़ने तक तुम्हारे उद्योग का कोई प्रभाव न हुआ हो तो फिर मैं कोई दूसरा कौशल रचूंगी । तब तुम उसी प्राचीर के उस ओर हमारी प्रतीक्षा करना । " सोम ने एक बार राजनन्दिनी को कातर और म्लान दृष्टि से देखा, फिर तेज़ी के कक्ष के बाहर हो गए ।