पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२७७

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" भाग गई? जाने दीजिए। महाराज के अन्तःपुर में दासियों और रानियों की गणना ही नहीं है, फिर न सही एक दासी। " “ पर , विभ्रव्य कहता है, वह असाधारण सुन्दरी थी । " “ थी तो महाराज ! आपके अन्तःपुर में वैसी एक भी नहीं है। “ क्या तुम भी कलिंग? " “ मैं भी महाराज! ” “ पर तुमने तो उसे देखा ही नहीं। " " देखा था महाराज! पलायन के समय में मैं उससे कोसल - राजवंश की ओर से क्षमा मांगने गई थी । " “ क्या कहती हो ? क्या उसका पलायन तुमको विदित है ? " “ मैंने ही उसे भगाया है महाराज ! " "किसलिए ? " “ दुष्कर्म-निवारण के विचार से । " " दुष्कर्म क्या था ? " “ यही कि उसे क्रीता दासी बनाया गया था । " “ यह तो अति साधारण है कलिंग! " “ दुर्भाग्य से यह अति असाधारण था महाराज ! " " क्या इसमें कुछ रहस्य है ? " " हां महाराज! ” “ वह क्या ? " " वह दासी चम्पा के महाराज दधिवाहन की पुत्री सुश्री चन्द्रभद्रा शीलचन्दना थीं । " " अरे , चम्पा की राजकुमारी! " " हां महाराज ! ” “ वह यहां कैसे दासों में बिकने आई ? " " कर्म-विपाक से महाराज ! " “ और तुम कहती हो , वह अनिन्द्य सुन्दरी थी । " " हां महाराज ! ” " तो महाराज दधिवाहन मर चुके , उनका राज्य भी भ्रष्ट हो गया । फिर वह दासी जब मूल्य देकर क्रय कर ली गई, तब मेरा उस पर अधिकार हो गया । " “ यही सोचकर मैंने उसे भगा दिया महाराज ! " " क्या गान्धार को ? " “ नहीं महाराज! ” " तब ? " " अकथ्य है । " " कहो कलिंग! " " नहीं महाराज । ”