81 . नाउन नगर के प्रान्त - भाग में एक नाउन का घर था । घर कच्ची मिट्टी का था परन्तु इसकी स्वच्छता दिव्य और आकर्षक थी । नाउन घर में अकेली रहती थी । यौवन उसका चलाचली पर था , परन्तु उसकी देहयष्टि अति मोहक , आकर्षक और कमनीय थी । उसकी आंखें चमकदार थीं , परन्तु उनके चारों ओर किनारों पर फैली स्याही की रेखाएं नाउन के चिर विषाद को प्रकट कर देती थीं । उसका हास्य शीतकाल की दुपहरी की भांति सुखद था । वह श्याम लता के समान कोमलांगी तथा आकर्षक थी । नृत्य , गान , पान -वितरण , अंगमर्दन , अलक्तक - लेपन आदि कार्यों में वह पटु थी । उसके इन्हीं गुणों के कारण राजमहालय से लेकर छोटे - बड़े गृहस्थ गृहपतियों के अन्तःपुरों तक उसका आवागमन था । इसी नाउन के घर में सोम और कुण्डनी ने डेरा डाला था । राजनन्दिनी को खोकर सोम बहुत उदास और दुःखी दीख पड़ते थे। वे विमन से मागध सैन्य का संगठन कर रहे थे। सेनापति उदायि प्रच्छन्न भाव से उनसे मिलते रहते थे। यज्ञ समारोह की भीड़ - भाड़ और देश - देशान्तर के समागत लोगों से मिलकर उनके विचार , भावना जानने का सोम को यह बड़ा भारी सुयोग प्राप्त हुआ था । परन्तु विमन और खिन्न होने के कारण वे अधिकतर इस नाउन के घर पर चुपचाप कई - कई दिन पड़े रहते थे। कुण्डनी छद्मवेश में बहुधा अन्तःपुर में जाती रहती थी । नाउन भी कभी - कभी उसके साथ जाती थी । आवश्यकता से अधिक स्वर्ण पाकर नाउन बहुत प्रसन्न थी और दोनों अतिथियों को अभिसारमूर्ति समझ उनकी खूब आवभगत करती और उनकी प्रत्येक इच्छा की पूर्ति करने की चेष्टा करती थी । कुण्डनी ने बड़ी हड़बड़ी में बाहर से आकर सोते हुए सोम को जगाकर कहा “ सोम , भयानक समाचार है ! ” । " क्या लोग हमारा छिद्र पा गए हैं ? " । " नहीं - नहीं, महाराज प्रसेनजित् और विदूडभ, दोनों ही राजधानी में नहीं हैं । " “ राजधानी में नहीं हैं तो कहां गए ? " “ यही हमारी गवेषणा का विषय है। " " तुमने कहाँ सुना ? ” " राजमहालय में । " " परन्तु नगर में तो कोई हलचल नहीं है ? " “ नगरवासियों से यह समाचार छिपाकर रखा गया है । " “ यह कैसी बात है ? ” सोम उठकर बैठ गया । फिर कहा - “ अब कहो , तुमने कहां सुना ? " " देवी कलिंगसेना के प्रासाद में । " “किसके मुंह से । "
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