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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३१०

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प्रकाश बुझ गया । वहां सन्नाटा छा गया । किसी जीवित प्राणी के वहां रहने का आभास ही नहीं रहा। सेनापति कारायण अब विमूढ़ होकर सोचने लगे कि क्या करना चाहिए! इसी समय दुर्ग में विपत्तिसूचक घण्टा बजा और निकटवर्ती ग्राम से सोते हुए सैनिक शस्त्र - सन्नद्ध होकर दौड़ते हुए दुर्ग की ओर जाते दीख पड़े । खाई पर बड़ी- बड़ी चर्खियां काष्ठ के भारी पुल को गिराने लगीं। कारायण ने यह देख अपना कर्तव्य निश्चित कर लिया। उन्होंने पचास भट छांटकर अपने साथ लिए, शेष डेढ़ सौ सैनिक अपने अधिनायकों की अधीनता में तीन टुकड़ियों में विभक्त किए । पहली टुकड़ी के नायक को आदेश दिया कि वह तुरन्त दुर्ग - द्वार पर प्रच्छन्न भाव से जाकर खाई के पुल पर अधिकार कर ले । दुर्ग में किसी शत्रु सैनिक को प्रविष्ट न होने दे। प्रत्येक सैनिक को सामने आते ही जान से मार डाले । नायक अपने सैनिक लेकर दबे - पैर दुर्ग - द्वार की ओर दौड़ चला । दूसरे नायक को सेनापति ने आदेश दिया कि वह घूमकर पश्चिमी दुर्ग-द्वार के चारों ओर फैल जाए और ग्राम से आते हुए सैनिकों को काट डाले । नायक के उधर चले जाने पर सेनापति ने तीसरी टुकड़ी के नायक को आज्ञा दी कि मैं अट्टालिका पर आक्रमण करता हूं , तुम बाहर से इसकी रक्षा करना । किसी भी सैनिक को भीतर मत घुसने देना । इतनी व्यवस्था कर सेनापति ने अपने पचास भट लेकर अट्टालिका पर आक्रमण किया । साधारण आघात से द्वार भंग हो गया । परन्तु उसे यह देखकर अत्यन्त आश्चर्य हो रहा था कि अट्टालिका में इतने आदमियों की चहल - पहल थी , प्रकाश था , वहां से गान -वाद्य की ध्वनि आ रही थी , पर वहां से एक भी जन बाहर नहीं निकला। क्या कारण है कि अब वहां एकबारगी ही सन्नाटा छा गया ? क्या भूमि मनुष्यों को निगल गई । सेनापति कारायण ने सैनिकों को प्रकाश करने का आदेश दिया । प्रकाश में उन्होंने गान -पान के अवशेष देखे. परन्तु मनुष्य नहीं। उन्होंने अत्यन्त सावधानी से प्रत्येक प्रकोष्ठ को , प्रत्येक कोष्ठक को देखना प्रारम्भ किया । एक प्रकोष्ठ में उन्होंने कुण्डनी और नाउन को वस्त्रखण्ड से बंधी हुई पड़ी देखा । सेनापति ने उन्हें बन्धन - मुक्त करके उनके मुंह में लूंसा हुआ कपड़ा निकाला । सेनापति कुण्डनी और उसकी संगिनी से परिचित न थे। उसने पूछा " तुम कौन हो और कक्ष के और आदमी कहां हैं ? " कुण्डनी ने पूछा - " क्या आप सेनापति कारायण हैं ? " " हां , मैं कारायण हूं। " " तो सेनापति , संकट सन्निकट है , शीघ्रता कीजिए। वह गर्भद्वार है । वहां सोलह सशस्त्र भट गए हैं । सम्भव है , सोमभद्र से उनका संघर्ष हो जाए । भीतर गर्भगृह में सोम एकाकी गए हैं । " कारायण ने नग्न खड्ग लेकर गर्भगृह में प्रवेश किया । परन्तु वहां अधिक जन नहीं जा सकते थे। सेनापति ने सोलह भट छांट लिए । __ लम्बी और पतली गुहा में चलते - चलते उन्होंने चार सशस्त्र तरुणों को सामने देखा । इन्हें देखते ही वे इन पर टूट पड़े, परन्तु सेनापति ने क्षण - भर ही में उन्हें काट डाला । आगे उन्होंने एक लौहद्वार को देखा जो बन्द था । सेनापति उसे देखकर हताश हो गए । वे द्वार तोड़ने या खोलने का उद्योग करने लगे।